बाल कविताशिशुगीत

बंदर ने खोला धंधा

बंदर ने खोला धंधा,
धंधा हो गया मंदा,
बर्फी समोसे चाट-पापड़ी,
का खोला था उसने धंधा.
फिर हथियार खरीदे उसने,
पिस्टल गोली तमंचे कितने,
बंदूकें थीं बड़ी-बड़ी और
सभी धड़ल्ले से लगे थे बिकने.
मिसाइलें भी उसने मंगाईं,
बम गोले थे खूब बड़े,
जितने मंगाता खत्म हो जाते,
बैठ न पाता बिक जाते थे खड़े-खड़े.
उसको हुआ अचंभा भारी,
हथियारों से इतनी यारी!
लगा सोचने वह शिद्दत से,
किसकी मति गई है मारी!
पता चला यह मनुष्य है भाई,
कर रहा है पड़ोसी से लड़ाई,
सब कहते थे बंदर लड़ाकू!
कहो बात क्या समझ में आई!
पड़ोसी की संपत्ति चाहे हड़पना,
पहले करो तो जरा कल्पना,
बम से संपत्ति नाश कर रहे,
चाह रहे क्या लाश झटकना!
चलो ये धंधा बंद करता हूं,
दुःखीजनों के दुख हरता हूं,
कभी न ऐसा काम करूंगा,
न्याय का पक्ष ले चाहे मरूंगा.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244