कविता

बेटियाँ

क्यों कहते है कि बेटियाँ होती है पराई,
ये बात मुझे आजतक समझ में न आई।
किसने? कब? और क्यों? ये रीत बनाई,
किसने? माँ- बाप से उनकी प्रीत चुराई।
माँ- बाप ने उसे पाला-पोशा आत्मनिर्भर बनाया
और समाज की रूढवादिता ने उसे कहा पराया।
बेटियाँ नहीं होती है धन पराई,
तभी तो माँ- बाप रोते रोते करते है उसकी बिदाई।
जब एकही कोख से पैदा होते हैं बेटे और बेटियाँ,
फिर क्यों, बेटे को मानाअपना धन और बेटियों को दिया पराये धन की बेडियाँ?
अजब है समाज का ये दस्तूर जिस घर मे ली जन्म ,वो घर उसे मेहमान बना दिया,
सात फेरे ले गई जिस घर वहां के लोगों ने उसे बेगाना बना दिया।
अब जमाना बदल गया है, जरूरत है सोच बदलने की,
अब बेटियाँ, बेटों से बढकर तैयार है माँ बाप की सेवा करने की।
आज बेटियाँ इंजिनीयर, डाक्टर ,आईएस, आईपीएस और साईंटिस्ट बनकर दिखा दी अपनी औकात,
बेटियाँ हर क्षेत्र में दे रही हैं देशको अपनी सेवा की सौगात।
बेटियाँ न होती तो न वंश होता और न होते हम और ये समाज,
वक्त आ गया है बेटियों को पराई धन बोलने वाले समाज के खिलाफ उठाए आवाज।
बदल दो इस रुढिवादी, तर्कहीन और बेबुनियाद समाज का बंधन,
बेटियों को बेटे के बराबर स्थान देकर उनका करो दिल से अभिनंदन।
— मृदुल शरण