बाल कहानी

बाल कहानी – चिड़िया

एक दरिया के किनारे, वृक्ष पर एक चिड़िया बैठी रो रही थी, अचानक ही ऊपर से उड़ता हुआ एक तोता आकर उसके पास बैठ गया। तोते ने बड़ी निम्रता से चिड़िया को रोने का कारण पूछा। तो चिड़िया ने रूआंसी आवाज़ में कहा, ‘‘कि इस दरिया में मेरी एक कीमती बाल (गेंद) गिर गई है। मुझे वह नज़र नहीं आती। वह मेरी बहुत ही कीमती प्यारी बाल है।’’

तोते ने उदास हो कर कहा, ‘‘ मैं तो तैर नहीं सकता, मुझे तैरना नहीं आता। अवसोस कि मैं तेरी कोई मदद कर सकता।’ तोता इतना कह कर वहां से उड़ गया। चिड़िया फिर रोने लगी उसके समीप कई उड़ते पक्षी आए और उसकी मदद पर बेबस हो कर उड़ गए।

उस वृक्ष के नीचे एक लूमड़ी आ बैठी। लूमड़ी ने चिड़िया को प्यार से कहा, ‘‘ कि तू क्यों रो रही है? क्या मैं तेरी कोई मदद कर सकती हूँ? तथा चिड़िया ने उसको भी बताया कि उसकी कीमती बाल दरिया में गिर गई है। लूमड़ी भी मदद करने पर बेबस हो गई।

फिर फुदकता टपोसरी मारता हुआ एक बांदर (बंदर) उसके पास आया। उसने पूछा ‘‘ कि तू क्यों रो रही है? चिड़िया ने उसको भी बताया तो बंदर भी बेबस हो कर चलता बना।

चिड़िया फिर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी तो अचानक एक मछली किनारे के पास आकर चिड़िया से पूछती है, ‘‘कि तू क्यों रो रही है? क्या मैं तेरी कोई मदद कर सकती हूँ?

चिड़िया ने उदास मुद्रा में मछली को बताया, ‘‘कि मेरी कीमती बाल इस दरिया में गिर गई है, वह मुझे मिल नहीं रही। मैं दरिया में डूबकी नहीं लगा सकती।’’

मछली ने उसको तसल्ली दते हुए कहा कोई घबराने की बात नहीं, तू रो मत, मैं तेरी मदद कर सकती हूँ। तू धैर्य रख। रोने से कोई मसला हल नहीं हो सकता। पुकार में विश्वास हो तो कामयाबी अवश्य मिलती है। मैं अब तेरी बाल ढूंढ कर लाती हूँ। तू धैर्य रखना।’’

थोड़ी देर के बाद मछली उसकी बाल (गेंद) ढूंढकर ले आई तथा वह उसने चिड़िया को हर्षता से दे दी। चिड़िया ने उस मछली का कोटि-कोटि धन्यवाद किया, ‘‘ कि तूने मेरी कीमती प्यारी बाल ढूंढकर ला दी है। तेरा बहुत-बहुत शुक्रिया, मैं तेरा अहसान कभी नहीं भूल सकती कि तू मुसीबत के समय मेरे काम आई है।’’

मछली फिर पानी के भीतर चली गई। कुछ दिनों के बाद दरिया में तेज़ तूफ़ान आ गया तो वह मछली पानी से बाहर निकलकर दरिया के किनारे से दूर आकर तड़पने लगी। चिड़िया ने उस मछली को देख लिया। चिड़िया तेज़ उड़ते हुए उसके समीप आ गई तथा उसको अपनी चोंच में रखकर दरिया में छोड़ दिया।

मछली ने उसका बहुत धन्यवाद किया। कई आशीषें दीें। तब चिड़िया ने हर्षता में आकर निम्रता से कहा, ‘‘ यह तो मेरा फर्ज़ था। क्योंकि मुसीबत के समय तू मेरे काम आई थी। इस लिए मेरा भी फ़र्ज़ बनता है कि मैं भी तेरी मदद करूँ।

—  बलविन्दर ‘बालम’

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409