कविता

सानिध्य

इन दिनों कुछ खास
एहसासों का सानिध्य
मन को रोमांचित कर रहा

कुछ दर्द जो जम गए थे आंखों में
काजल की तरह
खुशियों की छलकती बूंदों संग
बह चली है कहीं मर मिटने के लिए

आह !
आज फिर भरेगी उदास आंखें
आइकोनिक काजल की तीरे नजर….
जिसमें डूबकर जी लेना चाहता है किसी की बेपनाह चाहत

उफ ! ये फरवरी भी न
न जाने क्यों मेरा होकर खो जाता है मुझमें
और मेरा मन
हर दर्द को निगल लेता है नीलकंठ की तरह

तभी तो
गुलाब की खुशबू सी महकती
मेरी हर साँसों का एहसास मदहोश
और बेखबर होती चेतना

सच ये वेलेंटाइन वीक न!
मुहब्बत की तासीर दे जाता है
जिसकी रुमानियत पूरे साल असर दिखाती है

हां मैं प्रेम के वास्तविकता को जी रही हूं !

*बबली सिन्हा

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