कविता

नहीं चाहिए युद्ध

नहीं चाहिए युद्ध, कहते हैं गौतम बुद्ध

किसने इसे पुकारा है जमीन पर उतारा है
कितने हुए बेघर और कितनों को बेमौत मारा हैं
जीवन को रखो निर्मल व शुद्ध
नहीं चाहिए युद्ध, कहते हैं गौतम बुद्ध

महत्वकांक्षी आएं मेरी भी है शायद तुम्हारी भी हैं
करेंगे पूरी मिल बैठकर झांठ कर बांट कर
मिटायेंगे दूरियां दिलों की आपस में बैठकर
ना करेंगे तबाही अपने स्वार्थ और स्वाभिमान के लिए
करेंगे काम देश के निर्माण के लिए
आम जनता के समान आयुष्मान के लिए
करो ऐसे काम और बन जाओ प्रबुद्ध
नहीं चाहिए युद्ध कहते हैं गौतम बुद्ध

लगता है समय चीजों को बनाने में
फसलों को उगाने व पकाने में
नौनिहालों को नौजवान बनाने में
और नौजवानों को देश प्रेमी बनाने में
बस क्षणिक आत्म उल्लास के लिए
कुछ ही समय लगता है सब को मिटाने में
करके तपस्या जहान बनाया है सभी कुछ इस में समाया है
ना करेंगे नष्ट इसको कर ले मन को शुद्ध
नहीं चाहिए युद्ध कहते हैं गौतम बुद्ध

अगर हो गया युद्ध कुछ नहीं बच पाएगा
सब हो जाएगा नष्टअंधकार छा जाएगा
बिछड़ जाएगा मां का लाल और शहीद हो जाएगा
कोई पति अपनी पत्नी से ना मिल पाएगा
क्या होगाउन मासूमों का जिनका मूल अधिकार छिन जाएगा
बिना किसी गलती के उन सब का भविष्य मिट जाएगा
कल्पना करके रोता है मन दिल होता है छू वध
नहीं चाहिए युद्ध कहते हैं गौतम बुद्ध

उजड़ी चीजों को बस आने में समय लगता है
गिरी इमारतों को बनाने में समय लगता है
बिखरे हुए गांव को बस आने में समय लगता है
नहीं मिलता इंसान का जीवन बाजार में
इंसान का जीवन बनाने में समय लगता है
चलो मिल बैठे खोल दे दुश्मनी की गांठे
मिलकर बनाएंगे नई दुनिया करके आत्मग्लानि को शुद्ध
नहीं चाहिए युद्ध कहते हैं गौतम बुद्ध

– एल सी कुमार
सहायक महाप्रबंधक
एनएमडीसी [भारत सरकार का उपक्रम]
दोणिमलै, बेल्लारी, कर्नाटक