भाषा-साहित्य

एक भारत भाषा सेनानी : हरपाल सिंह राणा

जनभाषा में न्याय के लिए न्यायपालिका से ही न्याय की जंग

हर साल 15 अगस्त को हम स्वतंत्रता दिवस तो मनाते हैं लेकिन बिना स्वभाषा के स्व तंत्र कैसे हो सकता है और बिना स्व तंत्र के देश सही अर्थों में स्वतंत्र कैसे हो सकता है ? भारत की भाषा हिंदी, जिसे सभी स्वतंत्रता सेनानियों ने राष्ट्रभाषा कहा, जो भारत संघ की राजभाषा बनी, उस हिंदी को उसका सही स्थान तो उभी तक नहीं मिल सका। हिंदी को उसका सही स्थान दिलवाने की लड़ाई बहुत कम व्यक्तियों ने लड़ी है। उन्हीं चंद सिपाहियों में एक नाम है है कादीपुर, दिल्ली के हरपाल सिंह राणा, जो पिछले 30 वर्षों से देश में हिंदी को उसका कानूनी दर्जा और सही स्थान दिलवाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। जो जनभाषा में न्याय के लिए न्यायपालिका से ही न्याय की जंग लड़ रहे हैं।

हरपाल सिंह राणा बताते हैं कि बहुत कम व्यक्तियों को ही मालूम है कि भारतीय न्याय व्यवस्था में सिर्फ जिला न्यायालय में ही नहीं बल्कि उच्चतम न्यायालय में भी अब हिंदी में न केवल मुकदमा दायर किया जा सकता है, बहस की जा सकती है बल्कि उसका आदेश भी हिंदी में ही प्राप्त किया जा सकता है। हिंदी में मुकदमा दाखिल करने के लिए उच्चतम न्यायालय में न्यायालय की हिंदी समिति वादी की मदद भी करती है। यह सब मुमकिन हो पाया है हरपाल सिंह राणा के अथक परिश्रम की वजह से दरअसल सविधान के अनुच्छेद 348 के तहत उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय की भाषा अंग्रेजी है । उच्चतम न्यायालय की नियमावली 2013 भी अंग्रेजी में बनी हुई है और उसके तहत उच्चतम न्यायालय के सभी प्रकार के कार्य अंग्रेजी में ही किए जाते हैं । लेकिन सविधान की 350, 351 धाराओं सहित ऐसे अनेकों प्रावधान है जिनके तहत हिंदी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए और देश का नागरिक अपनी मातृभाषा में प्रतिवेदन दे सकता है और आवेदन कर सकता है और उसका जवाब उसी भाषा में देना अनिवार्य है।

वर्ष में 2017 में हरपाल सिंह राणा ने उच्चतम न्यायालय की अंग्रेजी में बनी नियमावली को हिंदी में बनवाने के लिए बिना वकील के स्वयं मुकदमा दाखिल किया और स्वयं उच्चतम न्यायालय में हिंदी में वार्तालाप (बहस) की, इसमें हरपाल सिंह राणा की मुख्य मांग को तो नहीं माना गया लेकिन कुछ ऐतिहासिक फैसले हुए, उच्चतम न्यायालय ने भी संविधान और हिंदी भाषा का सम्मान करते हुए स्वतंत्रता के बाद ऐतिहासिक पहल करते हुए इसी मुकदमे मैं पहली बार उच्चतम न्यायालय ने अपना आदेश हिंदी में जारी किया और कहा कि उच्चतम न्यायालय में हिंदी में मुकदमे दाखिल किए जा सकते हैं, मुकदमा दाखिल करने वाले व्यक्तियों की मदद उच्चतम न्यायालय की हिंदी समिति करेगी।

हरपाल सिंह राणा बताते हैं कि इससे पहले वर्ष 2016 में ने आजादी के बाद पहली बार उन्होंने जिला न्यायालय रोहिणी, दिल्ली में हिंदी में मुकदमा दाखिल किया था। ये उन्हीं के भागीरथ प्रयासों का परिणाम है कि आज दिल्ली के सभी जिला न्यायालयों में हिंदी न्यायाधीशों की नियुक्ति हुई और सभी जिला न्यायालय में हिंदी विभाग स्थापित किए गए । उन्होंने पटना उच्च न्यायालय में भी 1972 से विचाराधीन हिंदी भाषा को लागू कराने के लिए हिंदी में मुकदमे में हिस्सा लिया, हिंदी में बहस की और उच्च न्यायालय, पटना ने 30 अप्रैल 2019 को हिंदी लागू करने के लिए बिहार सरकार से अधिसूचना जारी करने के लिए कहा।

हरपाल सिंह राणा पिछले लगभग 30 वर्षों से हिंदी को उसका सम्मान और न्यायोचित स्थान दिलाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। इसके लिए ‘भारतीय भाषा आंदोलन’ द्वारा संघ लोक सेवा आयोग पर भी लगातार 14 वर्षों तक विश्व कs सबसे लंबे धरने में सहभागी रहे हैं, जिसमें देश के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ,पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह सहित अनेकों महत्वपूर्ण व्यक्ति हिस्सा ले चुके हैं। इसके अलावा भारत सरकार और राज्य सरकारों मैं भी हिंदी भाषा लागू करवाने के लिए अनेकों महत्वपूर्ण आदेश पारित करवाए। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री कार्यालयों सहित अनेकों विभागों, मंत्रालयों द्वारा कार्यालयों में अंग्रेजी में कार्य करने और अंग्रेजी में पत्र भेजने के खिलाफ की गई कार्रवाई में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री कार्यालय सहित अनेकों कार्यालय खेद जता चुके हैं और आगे से हिंदी में लिखे पत्रों का जवाब हिंदी में देने का लिखित में आश्वासन दे चुके हैं।

वे कहते हैं कि आज अंग्रेजी का विरोध करने की आवश्यकता नहीं है बल्कि हिंदी को और राज्यों में राज्यों की भाषाओं और मातृभाषा को बढ़ावा देने की आवश्यकता है क्योंकि मातृभाषा के बगैर व्यक्ति गूंगा है और बगैर भाषा के स्वतंत्रता के आजादी अधूरी है। नई शिक्षा नीति में भी मातृ भाषाओं पर जोर दिया गया है लेकिन इसके लिए भी भी जनजागरण, एक लंबे संघर्ष और जन-आंदोलन की आवश्यकता है। उनके प्रयास अभी भी जारी हैं। संघ की राजभाषा तथा जन-भाषाओं के लिए किसी भी हद तक तन, मन और धन से जिस प्रकार वे लगे हैं, ऐसा दूसरा उदाहरण कम ही दिखता है।

भारतीय भाषाओं के ऐसे सजग प्रहरी, भारत-भाषा प्रहरी ही नही भारत –भाषा सेनानी श्री हरपाल सिंह राणा को ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ की ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ। आने वाले समय में जब भारत-भाषा सेनानियों का इतिहास लिखा जाएगा तो उनमें हरपाल सिंह राणा का नाम भी प्रमुखता से लिखा जाएगा।

— डॉ. मोतीलाल गुप्ता ‘आदित्य’

डॉ. एम.एल. गुप्ता 'आदित्य'

पूर्व उपनिदेशक (पश्चिम) भारत सरकार, गृह मंत्रालय, हिंदी शिक्षण योजना एवं केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण उप संस्थान, नवी मुंबई