कविता

रंगीलो फागुन आया

रंग बिरंगो रंगीलो फागुन है देखो आया,
सबके चेहरे पे ढेरों आज खुशियां लाया।
गौरी को रंग में भिगाये  है देखो रसिया,
काला, नीला ,पीले से रंगी है चुनरिया।
छन्नू मन्नू की रंग में सजी निकली टोलियां,
गुलाबी नारंगी सफेद जामुनी और केसरिया।
सब रंगों में रंगे मना रहे हैं आज खुशियां,
फागुन के रंग में रंगे है सब मेला आया।
बुढ़े बच्चें नौजवान सब खेल रहे गुलाल,
एक दुजे से हिन्दू मुस्लिम को नहीं मलाल।
भेदभाव को मिटा कर दोनों खेल रहे हैं होली,
होली के रंग में पुरी दुनिया हुई हैं मतवाली।
रंग बिरंगो रंगीलो फागुन है देखो आया,
सबके चेहरे पे ढेरों आज खुशियां लाया।
भुला कर सब राग व्देष आज गले है मिलते,
इन्द्रधनुष रंगों में रंग कर एक दूजे को गले लगते।
असत्य की सत्य पर सब विजय है मानत,
इन रंगों की बात निराली है सब बैर भुल जाते ।
गोपियों संग रास रचाते हैं देखो गिरधारी,
मोहन के गुलाल अबीर से रंगी है आज ग़ौरी।
आज घर घर गुजिया मिठाई है सब बनाते,
एक दिन पहले होलिका दहन है करते।
रंग बिरंगो रंगीलो फागुन है देखो आया,
सबके चेहरे पे ढेरों आज खुशियां लाया।।
— कुमारी गुड़िया गौतम

गुड़िया गौतम

जलगांव, महाराष्ट्र