मुक्तक/दोहा

गरमी के सुर ताल

सुना रही है जिंदगी,पतझर वाले गीत,
अब बहार सूझे नहीं,इस गर्मी में मीत।

गरमी से बेहाल हैं ,नर नारी आबाल,
उनको झटपट चाहिए,शीतलता की ढाल।

गरम हवाएं छेड़तीं ,गरमी के सुर ताल,
कोमल सुर्ख गुलाब है ,गरमी से बेहाल।

गरमी की ये तपन है ,और महीना जून ,
मानसून से बोलिये ,लाए बरखा सून।

धूप चुभ रही शूल सी ,चढ़ता पारा रोज ,
इस गरमी में छाँह को ,खोज सके तो खोज।

— महेंद्र कुमार वर्मा

महेंद्र कुमार वर्मा

द्वारा जतिन वर्मा E 1---1103 रोहन अभिलाषा लोहेगांव ,वाघोली रोड ,वाघोली वाघेश्वरी मंदिर के पास पुणे [महाराष्ट्र] पिन --412207 मोबाइल नंबर --9893836328