सामाजिक

नीव

कितना कुछ बदल चुका है आज समाज में, पर… इतनी जल्दी इतना परिवर्तन आएगा, कभी सोचा न था। याद आता है मुझे बचपन से लेकर युवावस्था की वो बातें, शरारतें जो हम बेफिक्री से किया करते थे।

आस-पड़ोस के रहने वाले लोग चाची, मामी, दादी, फुआ हुआ करते थे, जिनके घर में बिना किसी रोक-टोक के आया जाया करते थे। इतना ही नहीं, उनके घर पर भी हमसब मिलकर कुछ न कुछ बदमाशियां शैतानियां कर लिया करते थे। पर कभी उन्होंने घर पर शिकायत नहीं की, बल्कि वही डांट डपटकर किस्सा खत्म…

एक वो समय था… जिसमें अपने ही नही दूसरों के संग भी रिश्तों का महत्व हुआ करता था। और हम उन रिश्तों में प्यार पाते थे।

पर समय ने कुछ यूं करवट ली कि वो सारी मानवीयता, अपनेपन का अहसास निगलती जा रही है, कितना भिन्न हो चुका है आज का इंसान. तभी तो भौतिकतावादी सोच लोगों के सर चढ़कर बोलता है और इस नशे में लोग भूल जाते है कि हम इंसान हैं और हमें इंसानियत के साथ ही जीना चाहिए ताकि भावी पीढी के लिए मिसाल बन सके. एक सशक्त समाज की नीव रख सके।

अभी कुछ दिन पहले की ही बात है पड़ोस के दो बच्चो के बीच हाथापाई हो गई. कुछ समय बाद वो बच्चा अपने घर (फ्लैट) पहुँचा जिसने मार खाई थी। उसने ये बात अपने मम्मी-पापा को बताई, इसपर उनका रिएक्शन कुछ यूं था “अरे तुम मार खाकर आ गया.. तुम कमजोर हो क्या उससे.. तुम्हें भी उसे दो थप्पड़ मारनी थी. ये बोलते हुए उसने अपने बेटे को मारकर रुला दिया। ओह बस इस बात के लिए कि वो मार खाकर क्यों आया मारा क्यों नहीं। अगली बार मारकर आना तभी मुझे सुकून मिलेगा…..हाय सात साल का बच्चा कैसे संकट में घिर गया।

इसी घटना पर मुझे याद आती है जब मेरा भाई जो मुझसे दो साल बड़ा था कंचे खेलने के लिए दोस्तों के संग दूसरी गली में चला जाता था।
तब मम्मी मुहल्ले के किसी आते जाते चाचा, भैया को बोलती थी कि जरा देखियेगा दीपक कंचे खेल रहा होगा तो उसे घर भेज दीजिएगा।
बेचारा भाई कंचे खेलते हुए पकड़ा गया और राजीव चाचा से थप्पड़ भी खाया। भाई जब घर आया और रोते हुए मम्मी को बताया कि मुहल्ले के राजीव चाचा ने उसे थप्पड़ मारी, बदले में मम्मी का जवाब था तुमको तो एक थप्पड़ नहीं चार थप्पड़ मारना चाहिए अच्छा किए हमीं बोले थे उनको तुमको घर भेजे।

मन सोचता है ये लोग जो आज माता-पिता है ऐसे पुराने दिन और उन रिश्तों की महक को महसूस कर चुके हैं जिसमें एक खुशहाल समाज, परिवार हुआ करता था।

वही लोग हां वही लोग अपने बच्चों में संस्कारहीनता भर रहे और गलत परवरिश कर रहे। शायद उन्हें नहीं पता वो एक ऐसा माहौल, समाज तैयार कर रहे हैं जिसमें मानवीय संवेदनाएं नगण्य होती जा रही है, लोग यंत्रवत से होते जा रहे हैं।

फिर जरा सोचिए आपके जाने के बाद आज के बच्चे इसी मतलबी और स्वार्थपूर्ण समाज का हिस्सा होंगे।
तो क्या तैयार हैं आप? जरा सोचिए! वास्तव में क्या अपने बच्चों के लिए ऐसे ही समाज का निर्माण करना चाहते हैं????

*बबली सिन्हा

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