राजनीति

भारत में माओवाद के अन्तिम दिन

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने माओवादी आतंकी गतिविधियों से संबंधित आंकड़े जारी किए हैं जिसमें कहा गया है कि देश में माओवादी हिंसा में 77% कई कमी आई है। राज्यसभा में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार माओवादी हिंसा 12 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर आ चुकी है। वर्ष 2009 में जहां माओवादी हिंसा की 2,258 घटनाएं हुई थी, वहीं 2021 में यह केवल 509 तक सीमित रही।

अब इन सभी आंकड़ो के सामने आने के बाद 14 पूर्व आईपीएस अधिकारियों ने एक संयुक्त बयान जारी कर सुरक्षाबलों की प्रशंसा की है। ‘ट्रैक द ट्रुथ’ बैनर तले जारी इस संयुक्त बयान में कहा गया है कि सीपीआई (माओवादी) का सशस्त्र संघर्ष पूरी तरह विफल होता हुआ नजर आ रहा है।

अपने संयुक्त बयान में इन शीर्ष पुलिस अधिकारियों ने कहा है कि पिछला वर्ष भारत के दशकों पुराने माओवादी आतंकवाद को रोकने में एक मील का पत्थर साबित हुआ है। जिस तरह से माओवाद प्रभावित पुलिस थानों की संख्या और जिलों की संख्या में गिरावट आई है उससे यह बात स्पष्ट है कि सुरक्षाबलों ने निरंतर दीर्घकालिक खुफिया अभियानों को अंजाम दिया साथ ही अच्छी तरह स समन्वय बिठाकर योजनाओं का क्रियान्वयन किया।

पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों (जिसमें डीजीपी स्तर के अधिकारी भी शामिल हैं) ने यह भी कहा कि खुफिया एजेंसियां और सुरक्षाबल इन सफलताओं को कभी हासिल नहीं कर पाते यदि इसके पीछे मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं होती और प्रभावित क्षेत्रों में विकास एवं कल्याणकारी योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जाता।

इन सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों ने कहा कि यह स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जिस तरह से प्रधानमंत्री किसान योजना, पीएम उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत, पीएम गरीब कल्याण योजना जैसी समाज कल्याण की योजनाएं उन स्थानों पर पहुँच रहीं हैं जिसे अनछुआ माना जाता था, यही कारण है कि माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में यह गेम-चेंजर साबित हुआ है।

इसके अलावा उन्होंने माओवादी आतंकी संगठन की गुरिल्ला आर्मी में नए लड़ाकों की भर्ती नहीं हो पाने के पीछे के कारण को भी बताया। उन्होंने कहा कि जिस तरह से स्थानीय जनजातियों को जमीन बांटी गई एवं केंद्र सरकार द्वारा चलाये जा रहे एकलव्य आवासीय विद्यालयों से जनजाति बालकों को स्तरीय शिक्षा मिल रही है, उसने उन्हें माओवादियों के संगठन में भर्ती होने से रोका है।

बयान में आगे कहा गया कि जिस तरह से नीतियां बनाई गई, उसके लिए माहौल तैयार किया गया, विभिन्न एजेंसियों एवं राज्यों के बीच तालमेल बिठाया गया, वह भी एक बड़ा फैक्टर है कि माओवादी बैकफुट पर जा चुके हैं। यही कारण है कि कुछ बड़े स्तर के माओवादी आतंकी या तो पकड़े गए हैं या ढेर किए जा चुके हैं।

दरअसल 2004 में जब पीपल्स वॉर ग्रुप (PWG) और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (MCC) के विलय के साथ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी (CPI-MAOIST) का गठन किया गया था तब इसके पोलितब्यूरो और केंद्रीय कमेटी के सदस्यों की संख्या 56 थी। लेकिन इन वर्षों में सुरक्षाबलों के द्वारा चलाये जा रहे अभियानों के बाद इनमें से 36 मारे गए हैं या गिरफ्तार हो चुके हैं। वहीं 20 सदस्यों की तलाश अभी भी जारी है।

(संकलित)