गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

चांद जब ठहर गया तो चांदनी बिखर गई
आसमां की गोद से ज़मीन पर उतर गई।

सरहदें ना पूछिए हमसे हमारे इश्क की
तुम ही तुम आए नजर ये नजर जिधर गई।

अब दुआओं में हमेशा नाम लेते हैं तेरा
पहले रब जाना नहीं ये जिंदगी गुजर गई।

मेरी चाहतों पर उनको यकीन जब हुआ
वक्त आखिरी था मेरी मौत की खबर गई।

हमने सारी जिंदगी मुसाफिरी में काट दी
तुम ही हो मंजिल मेरी तुम तलक डगर गई।

मुद्दतों से सब्र की तपिश में जल रहा है दिल
आज यूं देखा तुम्हें दिल में दर्द की लहर गई।

हर सदा मंजूर ए दिल होती नहीं “जानिब” कभी
तेरी बेरुखी संगदिल सनम मुझ पे ढा कहर गई।

— पावनी जानिब

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर