गर्मी में गागर की गरिमा।
कौन न जाने उसकी महिमा।
शीतल जल सबको है देती।
प्यास देह की वह हर लेती।।
माटी का निर्माण निराला।
बनते इससे कुल्हड़ प्याला।।
हँड़िया दिया सभी अति प्यारे।
नादें ,मटकीं हैं सब न्यारे।।
गागर का जल अति गुणकारी।
शीतलता सुगंध भी न्यारी।।
कुम्भकार के श्रम का सोना।
रूप निराला है अनहोना।।
आओ माटी को अपनाएँ।
कृत्रिमता को दूर भगाएँ।।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’