कविता

क्यों है हिंदी को राष्ट्रभाषा बनने की मजबूरी

हिंदी हिंद अभिनंदन।
मिलकर करें हम सब शत-शत वंदन।
इसकी खुशबू से खिल जाए देश में
यह कानन का चंदन।
संस्कृत भाषा की प्रसून।
भाषाओं की बगिया में महक उठे
खुशबू का आंगन।
निज भाषा के बिना सब सून
साहित्याकाश में कैसे खिलेंगे सुमन!
हिंदी को नहीं मिलेगा असल में सम्मान।
तो रोजगार में होगा सदा व्यवधान।
हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का,
खोजो जल्दी से समाधान।
राष्ट्रभाषा राष्ट्र का है स्वाभिमान।
भारत को हिंदी पर है अभिमान।
राष्ट्रभाषा के बिना प्रगति कर सकता है कौन?
देश हमारा क्यों है ‘हिंदी राष्ट्र भाषा’ पर मौन?
राष्ट्र की राष्ट्रभाषा से होती अलग पहचान।
क्यों अछूता है देश हमारा?
बिन राष्ट्रभाषा की पहचान।
सच है अनेकता में एकता का देता यह मंत्र
राष्ट्रभाषा के बिना कैसे हॅऺसेगा लोकतंत्र?
राष्ट्रभाषा के बिना नही किसी का हो सकता है असल में सम्मान।
राष्ट्रभाषा के बिना विश्व पटल सहना होगा
सदा अपमान।
अफसोस इस बात का है! बीत गया आजादी के बाद कई-कई अरसा।
हिंदी ही हो राष्ट्रभाषा, अब तक नहीं मिला  राष्ट्रभाषा दर्जा।
हिंदी आज महफिलों की कस्तूरी है।
क्यों राष्ट्रभाषा बनने की मजबूरी है ?
— डॉ.कान्ति लाल यादव

डॉ. कांति लाल यादव

सहायक प्रोफेसर (हिन्दी) माधव विश्वविद्यालय आबू रोड पता : मकान नंबर 12 , गली नंबर 2, माली कॉलोनी ,उदयपुर (राज.)313001 मोबाइल नंबर 8955560773