कविता

दम घोंटते रिश्ते

दम घोंटते रिश्ते
**************
आजकल रिश्ते सहारे कम
बंधन अधिक हो रहे हैं,
क्योंकि आधुनिकता के भूत
अब रिश्तों में भी बस रहे हैं।
माँ बाप, भाई बहन के रिश्ते भी
जब आज फीके हो रहे हैं,
मौसी मौसा बुआ फूफा मामा मामी
किस खेत की मूली लगे हैं।
मर रहे हैं रिश्ते सारे
संदेह के मारे बेचारे
कैसे कह दें हैं सहारे
जब कत्ल होते हैं रिश्ते सारे।
रिश्तों में संवेदनाएं भला
अब कहां दिखती बता दो
उम्मीद मैं करुँ भी तो क्यों
दम घोंटते जब रिश्ते सारे।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921