गीतिका/ग़ज़ल

इश्क बेहिसाब

सारे काम वो लाजवाब कर बैठी
इश्क हमसे वो बेहिसाब कर बैठी ।
सब देखते रहे मुुझे अखबार की तरह
वो मेरे चेहरे को किताब कर बैठी।
ना पीना कभी भी यह देके कसम
खुद की आँखों को शराब कर बैठी।
वफाओं का मिला यह सिला उसे
कई रातों की नींद खराब कर बैठी।
लिपट कर खूब रोए हम दोनों ही
वो अपनी वफा का हिसाब कर बैठी।
— आशीष तिवारी निर्मल

*आशीष तिवारी निर्मल

व्यंग्यकार लालगाँव,रीवा,म.प्र. 9399394911 8602929616