कविता

नर हो नर सा करो व्यवहार

अपने को जग में दिला दो पहचान
जब पाया है जग सा उत्तम जहान
अच्छे कर्म का तरू पे जब फल आया
जग में मानव का है तुम तन    पाया

नेकी कर जीवन में खुशियाँ को बुला ले
अच्छे संस्कार से अपनी बगिया सजा ले
जग में नफरत की दीवार  है       तोड़ना
मानव से मानव में प्यार का नाता है जोड़ना

जग दुःखदाई का है एक खान
जग है सबका सबका एक है मान
कोई कम ना कोई है यहॉ ज्यादा
हर मानव है परभु का  ही प्यादा

सत्कर्मों  को जीवन में दो पहचान
जग से पा लो अच्छे बुरे का ज्ञान
प्रभु की लीला है अपरंपार
सब का दाता है परवरदीगार

जैसी करनी वैसी ही भरनी
ना पैदा कर झंझट की जननी
प्यार का सागर खड़ा है तेरे द्वारा
झ्नका कर लो जग में सत्कार

जग है एक निराली माला
जिसमें रहकर खुद कोसंभाला
जहाँ नहीं ईष्या द्वेष का व्यापार
नर हो नर सा बन करो व्यवहार

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088