गीतिका/ग़ज़ल

बिजलियाँ अच्छी नही लगती ‘ग़ज़ल’

अच्छी नहीं लगती
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जला दे ज़िंदगी जो बिजलियाँअच्छी नहीं लगती |
बसेरों को मिटाती आँधियाँ अच्छी नहीं लगती |

दिलों में प्यार भर लो प्यार के छेड़ो तराने फ़िर,
कलेजा चीर दे वो बोलियाँ अच्छी नहीं लगती |

जफा के दाग से दामन सदा रंगते रहे हो तुम-
गुनाहों से भरी ये खूबियाँ अच्छी नहीं लगती |

नज़ारे दूर हैं इतने बहारों ने है मुँह मोड़ा-
दरो दीवार सूने खिड़कियाँ अच्छी नहीं लगती |

सही जाये न अब दूरी कहाँ हो अब चले आओ-
डसे है रात काली दूरियाँ अच्छी नहीं लगती |

नयन में नेह का काजल लगाया बाल में गजरा –
मगर ये रात की रानाइयाँ अच्छी नहीं लगती |

खिला है चाँद पूनम का सितारे खिलखिलाते हैं ,
नसीबा सो रहा अटखेलियाँ अच्छी नहीं लगती |

फिज़ाओं मे घुली खुशबू से मन मेरा बहकता है-
गुलों पर बैठती अब तितलियाँ अच्छी नहीं लगती |
मंजूषा श्रीवास्तव”मृदुल”

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*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016