गीत/नवगीत

हाथों में

लकीरों का जाल है बस इन खाली हाथों में
हाथ में कुछ है नहीं,इन मेहनतकश हाथों में
दिन भर करता है मजदूरी,
पापी पेट की है ये मजबूरी
कुछ नहीं ये पाता,सिर्फ छाले हैं इन हाथों में
फिर भी हारे नहीं, वो हिम्मत है इन हाथों में
घर से दूर रहने की मजबूरी
घर में चूल्हा जलना ज़रूरी
हर काम को दे अंजाम,वो ताक़त इन हाथों में
कितने सपनों के दे अंजाम,है हुनर इन हाथों में
आशीष शर्मा ‘अमृत ‘

आशीष शर्मा 'अमृत'

जयपुर, राजस्थान