कविता

जीवन के रंग अनेक

जीवन के रंग अनेक
कभी धूप ,कभी छांव,
कभी सुख ,कभी दु:ख
पर, मैं दिन– रात चलती हूं
ना थकती ना गिरती हूं।
मौसम बदलते हैं
पर, मैं नहीं बदलती,
 सपनों को साकार करने के लिए
 प्रतिदिन आगे मैं बढ़ती हूं।
कुछ कर गुजरने की चाहत मुझमें,
आसमां को छू लेना चाहती हूं।
ऊंचे हैं मेरे ख्वाब
मेरा उत्साह हुआ है ना कम,
मैं अपनी हाथों की लकीरों को
मिटाकर  स्वयं  मनचाहा रंगों से लकीर बनाती हूं।
जीवन के रंग अनेक
कभी धूप ,कभी छांव
पर, मैं  दिन – रात मेहनत करती हूं।
— चेतना चितेरी

चेतना सिंह 'चितेरी'

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