लघुकथा

कौआ

“मैं बहुत परेशान हो गई हूं.” सोफी ने अपनी सहेली मार्गी से कहा.
“वह मेरे घर की खिड़की के पास आकर बैठ जाता है.”
“तो क्या हुआ? बैठने दे.” मार्गी ने कहा.
“तू तो उसके साथ मिली हुई लगती है, इसलिए ऐसा कह रही है. पता है वह खिड़की के पास बैठ कर खिड़की पर अपनी चोंच मारता रहता है.”
“अब तू जो उसे घास नहीं डाल रही, तो खिड़की पर ही तो अपनी चोंच मारेगा न!”
“तेरे से तो बात करना ही बेकार है! पता है उसकी हरकतों से मैं बहुत डरी हुई हूं!”
“डरने वाली कौन सी बात है! देखा नहीं एक लड़की काउंटर पर बिलिंग करवा रही थी, तो सबके सामने एक बंदा हाथ में रिंग लिए घुटनों के बल बैठकर उसको प्रपोज कर रहा था. बहुत-से लोग वीडियो बनाते-बनाते येस-येस भी कह रहे थे. लड़के ने इतना साहस दिखाया है, लड़की भी मान जाए तो अच्छा है. लड़की नहीं मानी, फिर भी लड़के ने मनाना नहीं छोड़ा, तो लड़की बुरी तरह उसको झाड़कर चली गई! अगर तू इतनी ही परेशान है तो तू भी ऐसा तो कर ही सकती है न! या मान जा या फिर पीछा करने वाले को झाड़ दे, बात ही खत्म हो जाएगी और तेरी परेशानी भी.”
“तुझे मजाक सूझ रहा है और मुझे तो उसके कारण अब घर से बाहर जाने में भी डर लगता है.” सोफी परेशानी के साथ तनिक नाराज भी दिख रही थी.
“पता है, मैं नहाती हूं, तो भी मुझे घूरता रहता है!” कुछ रुककर सोफी ने कहा.
“तो बात यहां तक आ पहुंची है! उसके बिना तुझे भी चैन नहीं आ रहा होगा तभी तो तू भी उधर देखती है, नहीं तो तुझे कैसे पता कि कोई तुझे घूर रहा है!”
“और-तो-और अब तो वह पड़ोसियों को भी तंग करने लगा है.” सोफी ने सफाई दी.
“पता है, अब वो मेरे घर में भी घुस जाता है और कई बार तो मेरे पीछे-पीछे समंदर किनारे तक पहुंच जाता है!” सोफी की परेशानी क्या कम थी?
“अच्छा, पर अपने उस बिछुड़े वियोगी का नाम तो बता!” मार्गी ने चुटकी लेते हुए कहा.
“What do yoy mean by name! अरे भाई वह एक कौआ-है-कौआ!”
“धत तेरे की! खोदा पहाड़ और निकली एक चुहिया, वो भी मरी हुई,” मार्गी की हंसी नहीं रुक रही थी.” बाप रे, वह कौआ तो मजनुओं का भी बाप निकला!” मार्गी पेट पकड़कर हंस रही थी.
मार्गी हंस रही थी और कौआ सोफी को घूरता जा रहा था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244