गीत/नवगीत

गीत – कथा कलंकित हो जायेगी

कब तक नियम और तोड़ोगे?
कितनी नैतिकता छोड़ोगे??
युग को भला किधर मोड़ोगे?
टूटे हृदय न जोड़ोगे तो ,
कालिख अंकित हो जायेगी।।
कथा कलंकित हो जायेगी।।
असमंजस का विकट जाल है ,
कई सवाल खड़े मुँह बाए ।
उत्तर नहीं मिले हैं अब तक,
दुविधा मिटती नहीं मिटाए।।
घर घर जाकर देख रहा हूँ ,
कोई सुखी नही मिल पाया ।
गली मोहल्ले गाँव शहर क्या,
देश विदेश दुखी नर पाया ।।
आखिर क्या है लक्ष्य हमारा?
स्वार्थ साध क्या करें किनारा??
अपना सुख या भाईचारा ?
नीति कपट से सनी रही तो,
और सशंकित हो जायेगी ।।
कालिख अंकित हो जायेगी।।
कथा कलंकित हो जायेगी।।
यथा साथ में रहते रहते,
एक दूसरे के हो जाते।
बोले बिना समझ लेते सब,
मानवता के पाठ पढ़ाते।।
अब भी मानवता जिन्दा है,
केवल अपनी सन्तानों तक।
और अगर बच गयी शेष तो,
मेहमानों तक दरबानों तक।।
लगता है परिवार यही है ।
जगती का आधार यही है।।
बहुत बड़ा संसार यही है।
यही हमारी सोच रही तो,
व्यथा न टंकित हो पायेगी ।।
कालिख अंकित हो जायेगी।।
कथा कलंकित हो जायेगी।।
बीमारी बढ़ रही गरीबी ,
में बच्चे सचमुच भूखे हैं ।
कहीं नहीं पीने का पानी,
नदी कुए सारे सूखे हैं।।
भ्रूण परीक्षण रुका नहीं है ,
कम हो रहीं बेटियाँ दिन दिन।
इतनी अधिक समस्याएँ हैं,
लड़ना होगा सबको गिन गिन।।
तन में बिलकुल राम नहीं है।
साथ ग्राम क्या धाम नहीं है।।
फिर छोटा संग्राम नहीं है।
जय आतंकित हो जायेगी,
कथा कलंकित हो जायेगी।।
कालिख अंकित हो जायेगी।।
कथा कलंकित हो जायेगी।।
 — गिरेन्द्र सिंह भदौरिया “प्राण” 

गिरेन्द्र सिंह भदौरिया "प्राण"

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