पुस्तक समीक्षा

सजीवता और स्थानीयता लिए कहानियां

भारत दोसी का कहानी संग्रह ” महुडी  ” ग्रामीण जन जीवन पर लिखी गई 27 कहानियों का नायाब गुलदस्ता है  ।
   दक्षिण राजस्थान का ग्रामीण जीवन  इस संग्रह की कथा वस्तु है  जो गरीब,  वंचित,  शोषित है  जिसमें तनाव,  द्वंद,  उलझन,  मानसिक भटकाव, दिशाहीनता आदि है इसका  पात्रों के माध्यम से सजीव चित्रण किया गया है  । वहीं कहानीकार ने अपने आसपास के पात्रों,  स्वयं के भोगे हुए यथार्थ को शब्दों के माध्यम से बाँधा है इसलिए यह नई कहानी मानी जाती है  ।
  पुस्तक के शीर्षक  कहानी महुडी में तो शराब के दुष्परिणाम को ऐसे वर्णित किया है जैसे घटना हमारे समक्ष ही हो रही हो  । जमीन का टुकड़ा,  रमीला,  काला चेहरा आदि कहानियां  स्त्री व्यथा को संवेदना पूर्वक उकेरी है  ।
   लौटने का वक्त चला गया कहानी का कथ्य,  शिल्प उत्कृष्ट है  यह कहानी एक स्त्री को सभी मार्ग खुले होने के बावजूद एक मोह से बंधे होने से मुक्ति के आधुनिक संदर्भों को प्रस्तुत करती है  ।
  राजनीति और सरकारी व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार,  चरित्रहीनता के कारण पिसते बेरोजगार युवाओं की दुविधा,  मार्गहीनता को बताती कहानियां  किलकारी,  उलझन है  तो इससे निकलने का सफल होने की दिशा देती कहानी मुंडेर का सूरज भी है  ।
   कुछ कहानियां डायन प्रथा,  डाम प्रथा,  आत्मा भटकाव, और परंपरा को तोड़ने की सजा पर है  तो कुछ कानून के कारण आ रहे जीवन मे बदलाव को भी रेखांकित करती है  ।
  कहानियों में स्थान,  गांव  के नाम  आदि स्थानीय होने से सजीवता देते है वहीं वागडी बोली के संवाद सार्थकता देते है  ।
   इस संग्रह की कहानियां पाठकों को नया संस्कार देती है तो पुराने को सहेजने का पाठ पढ़ाती है  । कुछ कहानियां रौचक,  मनोरंजक है  ।
अशोक मदहोश
8003022368
पुस्तक समीक्षा
 कहानी संग्रह : महुडी
कहानीकार : भारत दोसी
प्रकाशक  : कलमकार मंच
मूल्य  : 150 रू