गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

आग ही आग हर तरफ देखा।
शाख का मूल का फरक देखा।
बूढ़े पत्तों  को  शाख रखते कब ,
खास रिश्तों  पे भी  बरफ  देखा।
प्यार  है आदमी  में  मतलब  से,
देखा  जो  प्यार तो  मसरफ देखा।
लिख रक्खा  ललाट  पर किस्मत ,
कैसे पढ़ता , न  जब  हरफ  देखा।
वीज बोता है  नफरतों  का  जो ,
धर्म  से  उसको  बर-तरफ  देखा।
•बर-तरफ= अलग
हरफ   =  अक्षर
 मसरफ = मतलब ,उपयोगी।
© शिवनन्दन सिंह

शिवनन्दन सिंह

साधुडेरा बिरसानगर जमशेदपुर झारख्णड। मो- 9279389968