कविता

तू कितनी मेहनत करता है

तू कितनी मेहनत करता है
वो इसी बात से डरता है
चलता रहता रुकता न कभी
सुख मिले उसे रुक जाये अभी
क्यूँ कदम कदम रंग भरता है
वो इसी बात से डरता है ।
वो चल ना पाता तेरे संग
बस ये ही ढंग तेरा करे तंग
क्यूँ लम्बे कदम तू धरता है
वो इसी बात से डरता है ।
आलस सुस्ती तुझसे दूर रही
उत्साह उमंग सदा भरपूर रही
बस ये ही तेरा उसे खलता है
वो इसी बात से डरता है ।
मिलते तुझको क्यूँ मीठे फल
उसे ना मिला इन प्रश्नों का हल
तू क्यों ना कभी फिसलता है
वो इसी बात से डरता है ।
दिन रात तेरा वो चिंतन करता
देख देख तुझे आहें भरता
फिर भी क्यूँ ‘तू’ हँसता है
वो इसी बात से डरता है ।

— व्यग्र पाण्डे

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,स.मा. (राज.)322201