गीत/नवगीत

छल, छद्म की छवि सुंदर

छल, कपट, धोखे की पुतली, कमाल कालिमा लगती हो।
छल, छद्म की छवि सुंदर, षड्यंत्र लालिमा सजती हो।।
काजल कीचड़ सी हो शोभित।
भूखी सदैव, पैसे की लोभित।
झूठ से चलती सांस तुम्हारी,
सच से सदैव हो जाती क्रोधित।
लगड़ाती सी, चालें चलकर, गोलाइयों से ठगती हो।
छल, छद्म की छवि सुंदर, षड्यंत्र लालिमा सजती हो।।
पैसा ही है लक्ष्य तुम्हारा।
पैसा ही है भक्ष्य तुम्हारा।
पैसे के लिए हद ना कोई,
पैसा ही, प्रेमी, पति, तुम्हारा।
फटी आवाज है, फटे गले की, फनकार सी फबती हो।
छल, छद्म की छवि सुंदर, षड्यंत्र लालिमा सजती हो।।
अंधेरे में खो जाती हो।
सोने के साथ सो जाती हो।
रिश्तों से तुम खेल हो करतीं,
मालामाल तुम हो जाती हो।
कानूनों को करो कलंकित, कुल की कालिमा लगती हो।
छल, छद्म की छवि सुंदर, षड्यंत्र लालिमा सजती हो।।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)