गीत/नवगीतपद्य साहित्य

भले ही सुंदर वस्त्र तुम्हारे

गोल गोल गोलाइयाँ सुंदर, गहराइयों में समंदर हो।
भले ही सुंदर वस्त्र तुम्हारे, तुम उनसे भी सुंदर हो।।
फोटाे बहुत देखे हैं हमने।
वार तुम्हारे सहे हैं हमने।
चाह कर भी चाह न सकते,
विश्वासघात देखें हैं हमने।
बाहर से ना दिखलाओ केवल, दिखलाओ कैसी अंदर हो?
भले ही सुंदर वस्त्र तुम्हारे, तुम उनसे भी सुंदर हो।
जहरीली सोने की गागर।
बन ना सकी प्यार का सागर।
अपराधी को छोड़ के जाओ,
बन नहीं सकते, अब कभी नागर।
सुंदरता बाहर की केवल, अंदर से चंचल बंदर हो।
भले ही सुंदर वस्त्र तुम्हारे, तुम उनसे भी सुंदर हो।।
हमने तो था सब कुछ सौंपा।
तुमने दिल में छुरा ही भौंका।
नहीं अभी भी नफरत हमको,
किंतु बन नहीं सकतीं लोपा।
होटल की हो तुम आकर्षण, ना गुरूद्वारे की लंगर हो।
भले ही सुंदर वस्त्र तुम्हारे, तुम उनसे भी सुंदर हो।।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)