गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

कल  तलक लगता था हमको शहर ये जाना हुआ
इक  सख्श अब दीखता नहीं तो शहर ये वीरान है
बीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम न मिल सके
जिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अंजान है
गर कहोगें ृदिन  को दिन तो लोग जानेंगे गुनाह
अब आज के इस दौर में दिखते नहीं इन्सान है
इक दर्द का एहसास हमको हर समय मिलता रहा
ये वक्त  की साजिश है या फिर वक्त  का एहसान है
गैर बनकर पेश आते, वक्त पर अपने ही लोग
अपनों की पहचान करना अब नहीं आसान है
प्यासा पथिक और पास में बहता समुन्दर देखकर
जिंदगी क्या है मदन, कुछ कुछ हुई पहचान है
— मदन मोहन सक्सेना

*मदन मोहन सक्सेना

जीबन परिचय : नाम: मदन मोहन सक्सेना पिता का नाम: श्री अम्बिका प्रसाद सक्सेना जन्म स्थान: शाहजहांपुर .उत्तर प्रदेश। शिक्षा: बिज्ञान स्नातक . उपाधि सिविल अभियांत्रिकी . बर्तमान पद: सरकारी अधिकारी केंद्र सरकार। देश की प्रमुख और बिभाग की बिभिन्न पत्रिकाओं में मेरी ग़ज़ल,गीत लेख प्रकाशित होते रहें हैं।बर्तमान में मैं केंद्र सरकार में एक सरकारी अधिकारी हूँ प्रकाशित पुस्तक: १. शब्द सम्बाद २. कबिता अनबरत १ ३. काब्य गाथा प्रकाशधीन पुस्तक: मेरी प्रचलित गज़लें मेरी ब्लॉग की सूचि निम्न्बत है: http://madan-saxena.blogspot.in/ http://mmsaxena.blogspot.in/ http://madanmohansaxena.blogspot.in/ http://www.hindisahitya.org/category/poet-madan-mohan-saxena/ http://madansbarc.jagranjunction.com/wp-admin/?c=1 http://www.catchmypost.com/Manage-my-own-blog.html मेरा इ मेल पता: madansbrac@gmail.com ,madansbarc@ymail.com