लघुकथा

वैधव्य

आज रामी ने अपने बहु बेटे को अलग   से अपना घर बसाने का कह दिया।बेटा जीगू ने अपने बापू की शक्ल भी नहीं देखी थी वह बहुत ही छोटा था जब उसके पिता की गर्दन तोड़ बुखार में मौत हो गई थी।उसको बड़े ही प्यार से उसकी मां रामी ने पाला पोसा था।
जब वह बड़ा हो गया तो उसकी शादी सोमी से हो गई थी।सोमी एक सुंदर व समझदार लड़की थी।सिर्फ एक बार ही उसके पति जीगु ने उसे  मां का खयाल रखने लिए बोला था।तब से सिर्फ एक ही ध्येयवथा सोमी का,उसकी सास का खयाल रखना। जिगु हैरान था कि उसकी मां ने क्यों उसे अलग घर में रहने के लिए बोल रही हैं।
कई बार उसने रामी को पूछा लेकिन वह बड़े प्यार से उसे जवाब देती थी ,उसकी आवाज में कोई नाराजगी नहीं दिखी।वह
ईसी लिए ही  ज्यादा परेशान था।उसने अपनी बुआ के सामने ये बात रखी और उन्हें फुरसत में रामी से मिलने की बात भी की।
जब बुआ आई तो रामी ने बड़े ही प्यार से आवकार दिया और साथ में खाना खा कर दोनों लेट के बातें कर रही थी तब बुआ ने ये बात रखी,”रामी क्यों बेटे बहु को अलग मकान में भेज रही हो? वह तो तुम्हे जान से प्यारा हैं। बहु से नाराज हो क्या?”
रामी पहले तो चुप रही किंतु फिर बोली,” क्या करू 22 साल का पति का विछोह तो उसने बिना विचलित हुए काट लिया ,लेकिन जब बेटा बहु उपर के कमरे में होते हैं और जो मस्ती आदि करने की आवाजे आती हैं तो तुम्हारे भाई के साथ बितायें पल मुझे बहुत ही विचलित कर देते हैं।बस यही कारण हैं।”
बुआ भी समझ गई और सच्चाई जान कर चुप हो सोचने लगी।कुछ दिन रह के वह जा रही थी तो भतीजे को पास में बुला कर बस इतना ही कहा,” जो रामी कहे रही हैं वैसा ही कर लो।”
— जयश्री बिरमी

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।