लघुकथा

मूक श्राप

   31 मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस के अवसर पर विशेष
“अरे पिंटू ये तंबाकू बेचना छोड़ दे.” दादी मां कहतीं.
कहने दो, पिंटू ना माने.
“बेटा, तंबाकू खाने वाले व्यक्ति में मुहं, गले या फिर फेफड़ों का कैंसर होने की प्रबल संभावना रहती है, फिर तंबाकू फेफड़े के कैंसर का कारण तो बन ही सकता है. साथ ही फेफड़े संबंधी अन्य रोग जैसे सीओपीडी, टीबी, निमोनिया आदि का जोखिम अधिक होता है.” पिता समझाते.
“पहले इतना तो पढ़ाया नहीं, कि कोई ढंग की नौकरी मिल सके, अब तंबाकू मत बेचो.” मन-ही-मन वह खुनस खाता.
“मेरी सारी सहेलियां मेरा मजाक उड़ाती हैं, कि तेरा भाई तंबाकू बेचता है.” बहिन कहती.
“तेरी सभी सहेलियों के भाई मेरे पास तंबाकू लेने आते हैं, वहीं खड़े होकर सिगरेट फूंकते रहते हैं.” वह मन में बड़बड़ाता.
“सारा दिन धार्मिक पोथियां पढ़-पढ़कर मां को तो बस श्राप की पड़ी होती है!” उसका मानना था.
और एक दिन सचमुच श्राप लग ही गया. फेफड़े के कैंसर से कभी तंबाकू न चखने वाला पिंटू चल बसा.
भले ही वह तंबाकू नहीं खाता था, सिगरेट नहीं पीता था, लेकिन सारा दिन तंबाकू में हाथ होने और सिगरेट के धुएं से उसको भी असर होना स्वाभाविक था. फिर जिनके बेटे-भाई-पति तंबाकू का शिकार होकर बीमार हो गए थे या परलोक गमन कर गए थे, उनके मूक श्राप ने भी कुछ तो असर दिखाया ही होगा!
“नशे की आदत है खराब,
गांजा-चरस-तंबाकू-शराब.
नशा नाश का कारण है,
करना इसका निवारण है.
नशे से बचने में ही समझदारी है.” रेडियो बोल रहा था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244