गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

तू अकेले कि काफ़िले में चल
मत ठहर बीच रास्ते में, चल

आज का दिन उदास बीता है
आज की शाम मयकदे में चल

ये सही साथ-साथ चलते हम
दो तटों के न फ़ासले में चल

थामता और फिर झटकता हाथ
प्यार के एक सिलसिले में चल

प्यार की दिल-दुकान बंद न हो
क्या ज़रूरी कि फ़ायदे में चल

लद नहीं पीठ पर किसी के तू
तू किसी के न पाँयचे में चल

रास्ते और मंज़िलें अपनी
सोच ले और फिर मज़े में चल

— केशव शरण

केशव शरण

वाराणसी 9415295137