लघुकथा

संतुष्टि की अनुभूति

“त्राहि माम, त्राहि माम, सूरज दादा” एक तरफ से प्रचंड गर्मी से त्रस्त लोगों की पुकार थी.
“रक्षा करोमि, रक्षा करोमि, भास्कर देवा” दूसरी ओर से कालिख से व्यथित लोगों का चीत्कार था.
“कानफोड़ू आवाजें और आगजनी कब रुकेगी मार्तंड स्वामी!” हाहाकार मचा हुआ था.
“हरियाली के बिना हमारे अस्तित्व के कोई मायने नहीं दिवाकर देवा.” सूखे-मुरझाए वृक्ष मानो कह रहे थे.
“और हमें घोंसले बनाने की सुविधा कब उपलब्ध हो सकेगी! प्रभाकर जी!” अपनी चहचहाहट खोकर खामोशी से पक्षी पूछ रहे थे.
“जलद कहलाने वाले हम जल के बिना किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहे.” बादलों की अपनी व्यथा थी.
“अनुकूल मौसम-जलवायु के बिना हममें न ताजगी रहेगी न सुवास, हमारे लिए क्या व्यवस्था है!” फूलों के मन की करुण गाथा थी.
सभी की अपनी-अपनी कथा थी और व्यथा भी. सूरज देवा सबकी फरियाद सुन रहे थे, पर कह न पाने की व्यथा मुखर हो उठी थी.”
“हम पिघलने को विवश ग्लेशियर्स की दशा तो शायद आपसे भी नहीं देखी जा रही होगी!”
“कुछ तो बोलिए सूरज दादा,” सब एक साथ बोल उठे थे.
“अभी हाल ही तो तुमने विश्व मौसम विज्ञान दिवस और विश्व पर्यावरण दिवस मनाया है, पर मौसम के लिए क्या किया है! सेमीनार करने और पुरस्कार वितरण करने मात्र से मौसम नहीं सुधरने वाला.” सूरज दादा बोलने को विवश थे.”
“अभी हाल ही तुमने विश्व वायुमंडलीय दिवस भी मनाया है और नारा लगाया है-
“वायुमंडल स्वच्छ रहेगा,
अच्छे स्वास्थ्य का कमल खिलेगा.”
“क्या नारे लगाने मात्र से वायुमंडल स्वच्छ रह स्केगा!” प्रश्न पूछने की बारी अब सूरज की थी. बाकी सब मौन हो सुन रहे थे.
“दुनिया को ग्लोबल वार्मिंग से बचाने के लिये पॉल्यूशन के एक-एक माईक्रान को बचाने के लिये अपनी गाड़ियां 10 साल में ही कौड़ियों के भाव निकालकर पर्यावरण संरक्षण की दुहाई देने वालो, किसानों को पराली जलाने पर हजारों का अर्थदण्ड ठोंक देने वालो, अच्छे-भले चलते कारखानों को सिर्फ इस लिये बन्द करवा देने वालो कि उनका प्रदूषण स्तर सिर्फ कुछ माईक्रान ही बढ़ गया था, पल भर में गोले-बारूद, मिसाइल्स और राकेट के हमलों से लाखों-करोड़ों और अरबों गुना प्रदूषण के गुब्बार फैलाने वालो, अपनी बरबादी के कारण मेरे तेजपुञ्ज को भी नेस्ताबूद करने को आतुर दुनिया वालो, तुम लोग अपनी ही काली करतूतों के चलते मेरी जीवनी शक्ति को भी दुष्प्रभावित करने पर क्यों तुले हुए हो.” मार्तण्ड के प्रचंड परिप्रश्नों से पशेमान और अंशुमान की कहर ढहाती किरणों से तापित सब लोग बगलें झांकने लगे थे. कुछ इधर-उधर खिसक भी गए थे.
“तुम सबकी व्यथा का भी यही कारण है,” दिनमणि ने वृक्षों-पक्षियों, फूलों-बादलों से कहा, जो अब तक हाथ जोड़े निःस्तब्ध खड़े थे.
“जब तक केवल दिखावा न करके दुनिया वाले पर्यावरण संरक्षण को कटिबद्ध नहीं होंगे, जब तक आपस में लड़-मरकर युद्ध की विभीषिका बढ़ाने की ओर से सचेत होकर प्रदूषण से नहीं लड़ेंगे, न दुनिया का कल्याण होगा, न आप सबका और न मेरा कोई वश चल सकेगा.” सूर्य ने तनिक रुककर कहा.
“जाओ, जाकर दुनिया को यह समझाओ.” सबको अपने लिए आदेश की प्रतीक्षा में अपनी ओर निहारते हुए देखकर दिनकर ने कहा.
“हम यह काम अभी से कर रहे हैं.” कहते हुए पक्षी चहचहाहट करते हुए विदा हो लिए.
बाकी सब भी अपनी-अपनी क्षमतानुसार अपनी क्रिया प्रणाली नियत कर सूरज के आदेश का क्रियान्वयन करने चल पड़े.
“अब प्रदूषण-हरण और पर्यावरण संरक्षण को कोई नहीं रोक सकता.” अपनी प्रचंड किरणों को थोड़ा समेटते हुए सूरज दादा तनिक संतुष्ट लग रहे थे.
सूरज दादा की इस सहानुभूति से बेहद त्रस्त दुनिया भी तनिक संतुष्टि की अनुभूति कर रही थी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “संतुष्टि की अनुभूति

  • *लीला तिवानी

    संतुष्टि की अनुभूति के लिए केवल नारे लगाने, सेमीनार करने या पुरस्कार बांटने से कोई लाभ नहीं होगा. पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण-हरण के लिए सबको ही कटिबद्ध होना पड़ेगा. तभी सबको संतुष्टि की अनुभूति हो सकेगी.

Comments are closed.