हास्य व्यंग्य

ज्यों-ज्यों डूबे, स्याम रंग (व्यंग्य)

कुछ लोगों का जन्म विरोध की कोख से होता है। वे तलवार की धार पर गर्दन रखेंगे। कुल्हाड़ी पर पैर रखेंगे। जेठ मास की तपती दोपहरी में दीपक लेकर सड़कों पर भटकेंगे, और तो और गंजों की बस्ती में कंघों का व्यापार करेंगे। समझाने की कोशिश करने पर इसे अपना संवैधानिक और विरोध करने का अधिकार बताएँगे। आत्महत्या को हत्या कहकर आपको अपराधी घोषित कर देंगे। हो सकता है आप अधिक समझाये तो लोकतंत्र के हत्यारे भी घोषित हो सकते हैं।
भारत संसार का सबसे बड़ा लोकतंत्रात्रिक देश है। क्यो? क्योंकि स्वतंत्रता के नाम पर आपको अनेक अधिकार प्राप्त है। आप चाहे तो सुअर के समान दर्जनों बच्चे पैदा करो, सरकार पालेगी।
आप अपनी अयोग्यता की कमज़ोरी को जातिगत आधार पर ढाँकिये, आरक्षण का बूस्टर डोज़ उसे संजीवनी दे देगा। रिश्वत लीजिए, मनी लॉण्डरिंग, गबन या अकूत राशि का घोटाला कीजिए कानून प्रमाण के अभाव में आपका आपका बाल भी नहीं उखाड़ सकता। अजी ! सोने पर पर सुहागा तो तब है और लोकतंत्र की शक्ति देखना है तो – आप किसी राजनैतिक दल के नेता बन जाइए। आपको राजकुँवर की तरह पलकों पर बैठाया जायेगा। फिर मजाल है कि कोई आपको छू भी सके। साहब! देश में आग लग जायेगी! संविधान खतरे में आ जायेगा!! मानवता को ताक पर रख, धर्म के नाम पर जितना चाहे अधर्म कीजिए , आपकी रक्षा के लिए संविधान- जिंदाबाद!!!। दिनरात संविधान का गला घोटनेवाले और संविधान को धर्मग्रंथ बतानेवाले आये दिन उसका सामूहिक बलात्कार करते हैं। हमारे लोकतांत्रिक देश की छबि दंगे , आगजनी, धार्मिक उन्माद, घोटालों, देशद्रोह से संसार में और उज्ज्वल होती है। पान-तंबाखू, गुटखा खा कर मनचाही जगह पर थूँकिए। यातायात नियमों को तोड़िए। जितना नंगा नाचना है, नाचिए। लोकतंत्र में सर्वाधिकार सुरक्षित है ! बिहारी काका इसी दिन के लिए कह गये हैं-ज्यों-ज्यों डूबे श्याम रंग, त्यों-त्यों उज्ज्वल होय।।
हमारे पुराणों में एक राजा है, देवताओं का – इन्द्र। सत्तालोलुप! कामुक!! भयग्रस्त!!! न जाने इनका सिंहासन किस तकनीक से बना था, जो ज़रा सी विपत्ति आने पर डाँवाडोल हो जाता था। खतरे में आ जाता था। कई बार उसकी रक्षा के लिए उसे अपनी ‘बाइयों’ का सहारा लेना पड़ता था। बाई लोग मटक-नाचकर उसकी रक्षा करती थी।आजकल लोकतंत्र खतरे में आ जाता है। ‘भाइयों’ के सहारे उसकी रक्षा की जाती है। भाई लोग चाकू-तलवार-बंदूक-पत्थर हाथों में लेकर उसकी रक्षा करते हैं।
विरोध करना अच्छी बात है लेकिन विरोध सार्थक, सहायक और तार्किक हो तो शक्ति को बढ़ाता है। विरोध के लिए विरोध करना फूहड़ता की निशानी है। विरोध के झाँसे में लोकतंत्र के मुँह पर कालिख मत पोतिए, क्योंकि लोक भी हम है और तंत्र भी हमारा है। हमारा लोकतंत्र हमारी शक्ति है। दुष्ट तांत्रिक बनकर उसका दुरूपयोग होने से बचाइए। वरना ना लोक रहेगा, और ना तंत्र। किसी ने कहा भी है कि-
क़ौम को अब कबीलों में मत बाँटिए
ये सफ़र चंद मीलों में मत बाँटिए
इक नदी की तरह है हमारा वतन
इसको ताल और झीलों में मत बाँटिए।

— शरद सुनेरी