गीत/नवगीत

गीत

सब कुछ भुला दिया है एक नाम बाकी है।
तेरी गली में गुजरी थी वो आखरी शाम बाकी है।।
मिटा दिया हमने जला दिया हमने,
दिल का मेरा बस आखरी सलाम बाकी है।

छोड़ के तेरे शहर को हम निकल पड़े हैं यूँ,
भूल के सारी दुनिया को चल पड़े हैं यूँ,
अब मेरा यहाँ न कोई मकाम बाकी है।

दर्द दिये जो तूने अश्क बन गए हैं,
ख्याब देखें थे जो मिलके टूट गये हैं,
मेरी बर्बादी का अब अंजाम बाकी है।

पीते रहें अब तक साकी फिर भी प्यासे हैं,
टूट गये हैं प्याले बस कुछ जरासे हैं,
तेरे हाथों दिए जहर का जाम बाकी है।

तन्हा रहने की हमने आदत बना ली है,
दिल मे तेरी बेवफाई अब रमा ली है,
मुझको अभी तो होना सिर्फ गुमनाम बाकी है।

— वीणा चौबे

वीणा चौबे

हरदा जिला हरदा म.प्र.