कविता

मेघराज

धूम धड़ाके बहुत कर लिए
कितनों के ही प्राण हर लिए
कब बरसो गे, हर्षाओ गे
मेघराज तुम कब आओगे ।।

सूख गये सब ताल तलैया
प्यास से व्याकुल बैल और गैया
नदियां, झील और झरने सूखे
प्यास धरा की कब मिटाओ गे
मेघराज तुम कब आओगे।।

खेत, खलिहान, गांव, किसान
बाग, बगीचे, सारा जहान
सब हैं तुम पर आश टिकाए
कब सबका संताप मिटाओ गे
मेघराज तुम कब आओगे ।।

झाड़ी,वृक्ष और उपवन सूखे
है राह पथरीली, पांव भी दूखे
आखिर क्यों तुम इतना रूठे
अमृत रस कब बरसाओ गे
मेघराज तुम कब आओगे ।।

दिल की नाव बना कर रखी
धूप छांव से बचा कर रखी
देर से तेरी बाट निहारूं
‌कब तक यूं ही तरसाओ गे
मेघराज तुम कब आओगे।।

पूर्वोत्तर में बहुत रुक लिए
सड़कें तोड़ दी, पुल बहा दिए
जान और माल की बाट लग गयी
हटो वहां से, कितना रुलाओ गे
मेघराज तुम कब आओगे।।

ध्यान रहे पूरे भारत की
माटी तुमको महकानी है
अन्न और जल से भर भंडारे
किस्मत सबकी चमकानी है
हमें पता है, देर भले हो
लेकिन सब वादे निभाओ गे
मेघराज तुम कब आओगे
मेघराज तुम कब आओगे ।।

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई