धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

संगीत: मन का मीत

आज 21 जून संगीत दिवस है. फ्रांस में वर्ष 1982 में विश्व संगीत दिवस को मनाने की शुरुआत की गयी थी इसे मनाने का उद्देश्य है कि संगीत के महत्व को समझाया जा सके और नए कलाकार उभर कर सामने लाये जाये.
जितना भी काव्य है, उसमें सुर-लय-ताल के समागम से संगीत का प्रादुर्भाव होता है. वाद्य से निःसृत मधुर काव्य-लहरी भी संगीत की अद्भुत मिसाल है. संगीत में जादू जैसा असर है. बांसुरी की मधुर तान मन को मोहित कर देती है. पावस की लाजवंती संध्याओं को श्वेत-श्याम मेघ मालाओं से नन्ही-नन्ही बूंदों का रिमझिम-रिमझिम राग सुनते ही कोयल कूक उठती है, पपीहे गा उठते हैं, मोर नाचने लगते हैं तथा मजीरे बोल उठते हैं. लहलहाते हुए खेतों को देखकर किसान आनंद विभोर हो जाता है और वह अनायास राग अलाप उठता है. यही वह समय होता है जबकि प्रकृति के कण-कण में संगीत की सजीवता विद्यमान होती है. इन चेतनामय घड़ियों में प्रत्येक जीवधारी पर संगीत की मादकता का व्यापक प्रभाव पड़ता है. संगीत में वह कोमलता है, जो पत्थर को मोम बना दे, जो पर्वत को राई कर दे, चट्टानों को चूरा कर दे. फूलों की महक उनका गान है. इसी गान को सुनकर तितलियां और भौंरे मोहित होकर आते हैं और उनके सुर में सुर मिलाते हैं. पवन की स्वर-लहरी मन को मोहित करने में सक्षम होती है.

“आइसक्रीम मुझको अच्छी लगती,
आइसक्रीम मैं खाऊंगा,
खाने को मुनिया जीभ हिलाएगी,
उसको भी मैं खिलाऊंगा.”

बच्चे को आइसक्रीम अच्छी लगती है, वह आइसक्रीम खाता है. मुनिया बोल नहीं सकती, इसलिए जीभ हिलाती-लपलपाती है. उसके जीभ हिलाने में एक मधुर संगीत है, जो बच्चे के मन को आकर्षित कर देता है. वह समझ जाता है कि मुनिया को भी आइसक्रीम चाहिए, वह मुनिया को भी आइसक्रीम खिलाएगा. यह मौन-मधुर संगीत का जादू है.

संगीत: कला और जीवन का संगम-सेतु है-
संगीत में वह कोमलता है,
जो पत्थर को मोम बना दे,
जो पर्वत को राई कर दे,
चट्टानों को चूरा कर दे.

संगीत में वह मादकता है,
जो मनुष्य को मानवता दे,
झूठे मद को चूर-चूर कर,
सच्चेपन से जीवन भर दे.

संगीत में वह सुंदरता है,
जो अग-जग को सुंदर कर दे,
सच्चे सौंदर्य की आभा से,
आभामय जगजीवन कर दे.

संगीत में वह है गंभीरता,
अंतस्तल में पैठ करे जो,
मानव की सद्प्रवृत्तियों को,
जगा-बढ़ाकर भला करे जो.

संगीत में वह मधुरता है,
अहि-कुरंग को मादिल कर दे,
बंजर में जो कुसुम खिला दे,
दुष्टों की दानवता हर ले.

संगीत कला के लिए कला है,
और कला जीवन के हेतु,
कला और जीवन का संगम,
सुगम करे शुभ संगीत-सेतु.

संगीत हमारे मन का मीत है. यह तन को स्वस्थ और ताजातरीन रखते हुए मन को भी स्वस्थ, सकारात्मक और ताजातरीन बनाता है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244