सामाजिक

क्यों नारी को हीन बनाया बनाया गया

हमारे देश में नारी की आदि  काल से ही देवी रूप में पूजी जा रही हैं उसी देश में नारी का सम्मान का हनन,मानसिक और शारीरिक रूप से सालों से होता रहा हैं।जिसमे सिर्फ मां सीता या द्रौपदी ही नहीं अनेक नारियां हैं जिनके बारे में हम ज्यादा कुछ जानते ही नहीं।अहिल्या शीला क्यों बनी?दत्तात्रेय की माता अनसूया की कहानी जिसमें सतीत्व की परीक्षा क्यों ली गई?देखा हैं कभी किसी पुरुष के सत की परख हुई हो, ऐसी कोई भी कहानी इतिहास में लिखी दिखी गई हैं कभी? क्यों सावित्रियाँ ही पति को यम से वापस ले आती हैं,देखा हैं कोई नर जिसकी पत्नी के मृत्यु के बाद अपनी पत्नी को वापस पाने के लिए यम से भीड़ा हो?
 सीता को माता कहलाने के लिए जो सहना पड़ा और वह सती भी बनी,पर क्या क्या कीमत चुकाई ये हम सब को विदित  हैं ही।वैसे क्यों हरण हुआ सीता का,राम और लक्ष्मण के स्वरूपनाखा के साथ हुए मसखरे वार्तालाप की वजह से ही तो। इसमें सीता के स्त्रीदाक्षिण्य में कोई कमी तो न थी। क्या क्या नहीं सहा उस राक्षसी राज्य में जहां आसपास सब राक्षस और राक्षसनियां बसती थी।जहां खाना पीना मां सीता के लिए पापकर्म सा था तो फल फूल आदि खाकर उन्होंने इतने साल बताएं।
द्रौपदी का को अपमान हुआ वह भी पांच पांच बाहुबली पतियों के सामने ये क्या बताता हैं  निरमाल्य मानसिकता या अपना द्युत धर्म के पालन करने की जूठी जिद्द! क्यों एक नारी के सम्मान को बचाने के लिए परिवार के मुखियां,गुरुजन और वहां दरबार में बैठे हुए सभी में से किसी को भी द्रौपदी की बेइज्जती से कोई तकलीफ हुई या नहीं वह तो वोही जानें लेकिन किसी ने भी उस अत्याचार का विरोध नहीं किया जब वह एक एक करके सब ही से रो रो कर बिनती करती रही। वहीं द्रौपदी को माता का दर्जा नहीं मिला लेकिन एक नरसंहार को जन्म मिला।द्रौपदी की वेदना को वाचा उसके पतियों ने दी जो वाकई में दर्दनाक थी जिससे बहुत रक्तपात हुआ जो अमानुषी था लेकिन वह एक अबला गिनी जाने वाली नारी की हाय थी।महाभारत के युद्ध के बाद आसमान में गिद्धों के बदल छा गए थे ये उस संहार के चित्र को स्पष्ट कर रहा हैं कि विनाश की मात्रा कितनी थी। ये समाज की स्त्री की तरफ लघु दृष्टि को साबित करती हुई घटनाएं हैं।
एक जमाने में ऋषि पत्नियां भी वाग संवाद में हिस्से लेती थी,यहां तक की किसी भी गोष्टी में निर्णयकर्ता भी नियत की जाती थी।वे विदुषियां थी तभी तो उनको इतना मान सम्मान भी मिलता था।
आज कल के जमाने में देखा जाएं तो नारी उत्पीड़न की वजहें बहुत ही सामान्य होने के साथ साथ बहुत ही गहन भी हैं।नारी शारीरिक बल के अलावा हरेक मामलों में पुरष से आगे हैं।व्यवहारिक मामलों में नारी से कोई मुकाबला पुरुष का नहीं हैं,मानसिक बल स्त्री के पास ज्यादा हैं, भावनात्मक लगाव कभी भी पुरुष से कम नहीं रही हैं वह।क्या ये नारी के मान को हीन बनाना एक पुरुष उन्नति के लिए प्रायोजित कार्यक्रम हैं? जैसे हम विद्यार्थी काल में लाइन बनाके अपने सहपाठी से कहते थे,” उस लाइन को छेड़े बगैर छोटी कर के दिखाओ।”और क्या किया जाता था,उसी लाइन के साथ में एक बड़ी लाइन खींच के पहली लाइन को छोटी बना दिया करतें थे,तो कालक्रम में स्त्री को अबला और बाद में कमतर साबित कर दिया गया ताकि पुरुषों के अपेक्षित सम्मान या ईगो को पूरा किया जा सके।
— जयश्री बिरमी

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।