कविता

विडम्बना

समाज की
सारी अच्छाइयाँ
धीरे धीरे
समाप्त होने लगती हैं
जब इंसान का
नैतिक पतन
हो जाता है ।
नैतिक बल
नहीं रह जाता है,
सच को सच और
झूठ को झूठ
बोलने का।
लोभ के वशीभूत
इंसान बन जाता है
कपटी और चाटुकार
छोड़ देता है दामन सच का
और करने लगता है
 झूठ की जयजयकार।
— निर्मल कुमार दे

निर्मल कुमार डे

जमशेदपुर झारखंड nirmalkumardey07@gmail.com