कहानी

चिट्ठी वाले भैया

 

रवि जब हाल में पहुँचा, कवि सम्मेलन आरंभ हो चुका था। उसके आगमन की सूचना संचालक महोदय द्वारा दी गई, तो सबकी निगाहें रवि की ओर उठ गईं।
उसे आयोजक समिति के पदाधिकारियों द्वारा मंच पर ससम्मान ले जाया जा रहा था कि एक युवा कवयित्री ने आकर उसके पैर छुए। उसने आशीर्वाद देते हुए उसके पैर छू लिए।वो कवयित्री हड़बड़ा कर बोली -ये क्या कर रहे हैं सर।
अरे कुछ नहीं, आपने जो पाप चढ़ा दिया, उसे थोड़ा कम कर रहा था।
ऐसा क्या कर दिया मैंने?
आपने जो किया,शायद अंजाने में ही किया होगा। क्योंकि मैं तो आपको जानता तक नहीं हूंँ। रवि ने शांत मुद्रा में कहा।
मगर मैं तो जानती हूंँ आपको। मेरा नाम सीमा है।आप वो चिट्ठी वाले भैया जी हैं। जिसनें मेरी रचना में ढेरों कमियाँ निकाली थी, चिट्ठी भेजकर?
ओह तो वो तुम हो। सारी बहन! तुम्हें कैसे भूल सकता हूँ। कार्यक्रम के बाद बैठकर बातें करते हैं।
रवि ने हाथ जोड़ लिए और मंच की ओर बढ़ गया।
रवि को आज के आयोजन में बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया गया था। उसने सीमा को भी अपने पास बुलाकर बैठाया।
अंत में जब रवि ने अपना उद्बोधन दिया तो सीमा ही नहीं सारा पंडाल आश्चर्य चकित था।
उसने सीमा की ओर इशारा करते हुए कहा कि मुझे खुशी है कि आज के आयोजन में शामिल होना अत्यंत विशेष है। क्योंकि आज हमारी अनदेखी बहन और उसके चिट्ठी वाले भैया की पहली मुलाकात का सुखद संयोग भी बन गया। हमारे बीच में है। सीमा न केवल अच्छी कवयित्री है, बल्कि हमारे बहन भी है। जिसने आलोचना भरे एक पत्र को रिश्तों के सूत्र में पिरो दिया। यह अलग बात है कि अब तक मैं भाई होने का कर्तव्य तो नहीं निभा सका, लेकिन सीमा ने अपने चिट्ठी वाले भाई की कलाई के सूनेपन को जरुर दूर किया है। आप सभी को जानकर आश्चर्य होगा कि मैंने अभी तक उसको कोई भी उपहार नहीं दिया, क्योंकि इसने मुझे ऐसा कुछ करने का अवसर ही नहीं दिया। शायद मेरी टिप्पणी से कुछ खफा रही होगी। लेकिन भातृत्व प्रेम में अपने कर्तव्य जरुर निभाती आ रही है। मगर आज मैं उसको जो उपहार दूंगा, वह अनोखा होगा।
मुझे आश्चर्य है कि आपके बीच इतनी अच्छी कवयित्री मौजूद है और उसे आप लोगों ने मौका तक नहीं दिया या यूँ कहेँ कि नवांकुरों को आगे लाने में हिचकिचाहट महसूस करते हैं। आप खुद से सोचिए कि आपको, हमको भी किसी ने पहली बार मंच दिलाया था, तब हम आप आज नाम कमा रहे हैं, सम्मान पा रहे हैं। आज का दिन मेरे लिए विशेष है, कि मुझे उसके स्नेह का कर्ज उतारने का रास्ता मिल गया। ये ईश्वर की बड़ी कृपा है।
मैं आप लोगों को दोष नहीं दे सकता, परन्तु सीमा अपनी राखियों के रूप में जो सौगात देती आ रही है, उसके लिए मैं और ज्यादा तो कुछ नहीं कर सकता। लेकिन उसके लिए इसी शहर में बहुत जल्द ही राष्ट्रीय कवि सम्मेलन कराऊँगा और उसे सबके सामने मंच पर  लाऊँगा। मेरी ओर से उसके लिए यही मेरा उपहार होगा।
तालियों की गड़गड़ाहट के बीच सीमा की आँखों से बहते अश्रुधार उसकी खुशी का बखान कर रहे थे। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसकी रचनाओं में मीनमेख निकालने वाला चिट्ठी वाला भाई उसकी राखियों के बदले इतना मान सम्मान भी दे सकता है।
सीमा उठकर डायस के पास पहुँची तो रवि ने उसे गले लगाकर, पीठ थपथपा कर उसको आश्वस्त किया।
सीमा ने हाथ जोड़कर पंडाल और मंच पर उपस्थित सभी को हाथ जोड़कर अभिवादन किया।
सम्मेलन के आयोजकों को अपनी भूल का अहसास हो रहा था।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

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