कविता

हौसलों का हिमालय हूँ मैं

 

आजकल मन कुछ उदास सा रहता है

शायद इसीलिए इस भीषण गर्मी में भी

शरीर बर्फ़ की मानिंद ठंडा हो जाता है।

कहीं मेरी उदासी का यही कारण तो नहीं

क्योंकि मेरा डर भी तो कुछ यही कहता है।

आप समझदार, पढ़ें लिखे लगते हो,

फिर मेरी उदासी को क्यों नहीं पढ़ सकते हो,

या आप भी डर डर कर जी रहे हो

या मेरी विदाई का इंतजार कर रहे हो,

मन ही मन फूले नहीं समा रहे

या मुझसे ईर्ष्या कर रहे हो।

जो भी हो सब अच्छा है

आपके साथ मेरी शुभेच्छा है,

आप सच कहने से कतराते हो

इसीलिए तो मुझे नहीं भाते हो,

बहुरुपिया आवरण ओढ़ चले आते हो

शुभचिंतक बन पीछे से वार करते हो

अपनी कुटिल सफलता का इंतजार करते हो,

असफल होकर अपना सिर धुनते हो।

अपने सपनों में भी मुझे पाते हो

क्योंकि तुम स्वार्थी जो है

तभी तो मुझसे इतना जलते हो

मैं न रहूँ बस! यही दुआ करते हो

पर अब तक असफल ही हो।

माना कि मैं थोड़ा उदास हूं

थोड़ा डर डर कर जी रहा हूँ

मगर इससे मुझे फर्क नहीं पड़ता

क्योंकि मैं अपने हौसलों से ही जी रहा हूँ

आज भी मैं लड़कर आगे बढ़ रहा हूँ

हौसलों का हिमालय जो मैं हूँ।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921