गीतिका/ग़ज़ल

प्यार की पाठशाला

दुनिया यह दुनिया मृतक शरीर का मज़ार बस ।
प्यार की पाठशाला में हो जाए पल भर प्यार बस ।।
 नफरतों को काटती है उल्फत की धार बस,
प्यार करिए,  हर वक्त, प्यार करिए, प्यार बस ।
ये कहां की मुंसिफी है  ये कहां की रीत है,
गुल उन्हें जो बेवफ़ा है, बावफा को ख़ार बस ।
क्यों नहीं कहते खुल के क्यों ये लव ख़ामोश है,
क्यों फ़क़त हो खींचते, पन्नों में कुछ अशआर बस ।
मुझको फुर्सत नहीं जो प्यार की पोथी पढूं,
मुझको करते हैं आकर्षित पोथियों के सार बस ।
अब समझ आई उसे मोहब्बत के सब बारीकियां,
अब वो नफरत कम करें, करें… प्यार ही प्यार बस ।।
इश्क़ की पेंचीदगी बादल नहीं समझा कभी,
इश्क़ के संग हुस्न, करता ही रहा व्यापार बस ।।
दुनिया यह दुनिया मृतक शरीर का मज़ार बस ।
प्यार की पाठशाला में हो जाए पल भर प्यार बस ।।

मनोज शाह 'मानस'

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