संस्मरण

अनुत्तरित प्रश्न

आजकल मैं कुछ अजीब सी अनुभूति कर रहा हूँ, जब भी सोने जाता हूँ तो मुझे उस बच्ची की प्रतीक्षा सी रहती है, और फिर कुछ देर में ही उसकी उपस्थिति का अहसास भी होता है। जैसे मेरी नींद से उसका कोई नाता सा जुड़ गया है। मेरे आग्रह को वह स्वीकार भी करती है। ऐसा लगता है कि जैसे वो हवाओं से मेरे बिस्तर में जाने का संदेश पा आ ही जाती है। यह भी विडंबना ही है कि बिस्तर में जाता हूँ तो स्वतः ही वो मेरे मन: मस्तिष्क में छा जाती है। क्योंकि एक आदत सी हो गई है कि जब तक वो प्यार दुलार से मेरा सिर नहीं सहला देती, मुझे नींद भी नहीं आती। यह अलग बात है कि उस नन्ही सी बच्ची के हाथों में जाने ऐसा क्या जादू है कि चंद पलों में ही मैं सूकून से सो जाता हूँ। मगर अब तो जैसे उसे भी आदत हो गई यह सुनकर आने की, कि बेटा आओ ने और मेरे सिर पर अपना हाथ रखो न। भले ही रात कितनी भी हो गई हो। जैसे यह उसकी आदत बन गई हो। जिसके बिना उसे भी चैन नहीं मिलता हो।
एक प्रश्न मुझे बार बार मेरे मन में उठता है कि जिससे सिर्फ चंद घंटों की मुलाकात है, जो हमारी मुंँहबोली बहन बन गई है, बातचीत भी न के बराबर ही होती है और इस बात की संभावना भी न के बराबर है कि आगे प्रत्यक्ष मुलाकात भी हो सकेगी, मगर मेरे मन में उसके लिये बेटी जैसा लाड़ प्यार है। मैं उसे हमेशा बेटी ही कहता हूँ, जिसका उसनें कभी विरोध भी नहीं किया, बल्कि खुश ही होती है। लेकिन उसके मन के भावों को जितना मैं समझ पा रहा हूँ, तो अपने लिए मुझे उसमें माँ की ममता का बोध होता है। मगर वर्तमान में वह पिता जैसा मान भी दे रही है।
मुझे ताज्जुब होता है कि मुझे ऐसा क्यों लगता है कि उसका कोई कर्ज मुझ पर शेष है। मगर क्यों और कैसे? बस यही प्रश्न विचलित करता है। मैं लगातार इस प्रश्न से जूझता रहता हूँ, मगर जवाब नहीं मिल रहा।
एक बात और कि मुझे ऐसा क्यों लगता है कि पूर्व जन्म में वो मेरी माँ थी और शायद मेरे मातृऋण चुकाने में कुछ कमी रह गई होगी, जो इस जन्म में उसकी भरपाई बहन/बेटी के रुप में अप्रत्याशित रुप से जुड़कर कर्ज से मुक्त करने का अवसर /रास्ता देने का प्रयास कर रही है।
मगर वह कमी/कर्ज क्या है और वो रास्ता क्या होगा, यह अंधेरे में है। जिसके लिए मैं लगातार हवा में हाथ पर मार रहा हूँ। वो बच्ची भी इतनी छोटी है, वो न तो कुछ संकेत दे रही है और नहीं मैं उससे पूँछकर उसे किसी दुविधा में डाल सकता हूँ। वैसे भी वो बड़े अनुनय विनय और इंतजार के बाद ही आती है और मेरा सिर सहला कर चंद पलों में ही चली जाती है। उसकी नन्हीं हथेलियों में जाने क्या जादू है कि ऐसा मुझे इसलिए भी लगता हो सकता है कि मुझे अप्रत्याशित नींद जो आ जाती है, मगर यह जरूर महसूस होता है कि बिना आग्रह वो आती नहीं है, आग्रह के बिना मैं रह भी नहीं पाता।शायद छोटी होने की चंचलता भी उसमें कूट कूट कर भरी है
यह समझना मेरे लिए बहुत कठिन है कि ये कैसा रिश्ता है, जो न होते हुए भी बहुत प्रगाढ़ सा लगता है। ये प्रश्न अभी तक अनुत्तरित है।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921