लघुकथा

मजे का मार्ग

                                        विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर विशेष

“गोपाल, तुम कहां हो?” पीछे मुड़कर देखा गोपाल ने कोई भी नहीं था, बस नीम के पेड़ पर लगा एक झूला हिल रहा था. “जाने कौन इस घने जंगल में यह झूला लगा गया था!” उसका स्वगत कथन था.

“तुम मेरी आवाज सुन रहे हो?” दिखाई तो फिर भी कोई नहीं दिया!

“लगता है मेरी तरह तुम भी विचारों के झूले में झूल रहे हो.”

“न जाने कौन बोल रहा है, पर इसे कैसे पता कि मैं विचारों के झूले में झूल रहा हूं! कल तक तो सब ठीक चल रहा था, पर कोरोना ने आकर सब मटियामेट कर दिया.” एक बार फिर उसने आवाज की दिशा में देखा.

“इधर निशा अंधेरा कर गई, उधर उधारी वालों की जमात ने उसके सुख-प्रकाश की तिजोरी में भी निशा-सा अंधकार कर दिया.” वह तो नहीं, पर उसका मन सुबक रहा था.

“क्यों रोते हो बेटा! तुम्हारा गम मुझसे अधिक तो नहीं ही होगा! आज तुम यहां जो हरा-भरा घना जंगल देख रहे हो, अंधा पैसा चाहने वालों की जमात कल यहां कंकरीट का जंगल बना देगी. सुन रहे हो न बेटा!” गोपाल अभी भी किंकर्तव्यविमूढ़-सा देख रहा था.

“फिर जब बाढ़ आती है, अतिवृष्टि या अनावृष्टि हो जाती है, तो सब मुझे ही कोसते हैं.” कुछ पल को दोनों ओर मौन छा गया.

“आप कुछ प्रतिक्रिया क्यों नहीं करतीं?” मौन का मर्दन करते हुए गोपाल बोला.

“मेरे न चाहते हुए भी बाढ़-अतिवृष्टि-अनावृष्टि का आना प्रतिक्रिया ही तो है!”

“ऐसा नहीं है कि लालसा के मारे हुओं को अपनी करनी के दुष्परिणामों का पता नहीं है, पर लालसा के कारण वे अंजान बने रहते हैं.” तनिक रुककर उसने कहा.

“उनकी करनी ही उन्हें ही उन्हें विनाश के झूले में झूलने को विवश कर रही है. कुदरत के कहर के सामने वे और कर भी क्या सकते हैं!”

“आप कुदरत हैं?” गोपाल का आश्चर्य चरम पर था.

“हां बेटा, मैं कुदरत ही हूं और कुदरत के झूले में झूल रही हूं. विचारों की उथल-पुथल से हो गई तुम्हारी अवसाद-ग्रस्त गमगीन दशा को देखकर मैंने विचारों की उथल-पुथल से विराम लेने का निश्चय किया है.” आवाज की चुप्पी से सन्नाटा छा गया था.

“जब मैं कुछ और नहीं कर सकता तो मुझे भी कुदरत की तरह विचारों की उथल-पुथल के झूले में झूलने से विराम लेकर वर्तमान का आनंद लेना चाहिए.” सन्नाटे के चक्रव्यूह से गोपाल ने मजे का मार्ग निकाल लिया था.

झूले का हिलना बंद हो गया था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

5 thoughts on “मजे का मार्ग

  • *लीला तिवानी

    मन के अवसाद-ग्रस्त होने से कोई हल तो नहीं निकल सकता, इसलिए मन को मनाकर मजे का मार्ग ढूंढकर बिंदास जीने से समस्याएं हल हो सकती हैं.
    मन के अवसाद-ग्रस्त होने पर भी जब कोई हल न निकलता नजर आए, तो…
    “जब तुझसे न सुलझें तेरे उलझे हुये धंधे,
    भगवान के इंसाफ पे सब छोड़ दे बंदे,
    खुद ही तेरी मुश्किल को वो आसान करेगा,
    जो तू नहीं कर पाया तो भगवान करेगा.”
    कुदरत / प्रकृति हमसे सीखती भी है, सिखाती भी है.

  • *लीला तिवानी

    शुरुआत में हेपेटाइटिस से पीलिया, मूत्र का रंग गहरा हो जाना, पेट में दर्द और सूजन, भूख का कम लगना, वज़न का अचानक घटना, उल्टी होना और हर वक़्त थके रहना जैसे लक्षण होते है, तो अक्सर इसे लोग नज़र अंदाज़ करते हैं।

  • *लीला तिवानी

    हेपेटाइटिस-ए और ई ओरल फेकल रूट से फैलता है। दूषित जल पीने से और दूषित भोजन खाने है, खुले में शौच, हाथ न धोना और सीवर आदि की सफाई करने वाले लोगों में हेपेटाइटिस संक्रमण का खतरा अधिक होता है। दूसरी तरफ हेपेटाइटिस-बी और सी संक्रमित व्यक्ति को लगाए गए इंजेक्शन को दोबारा किसी व्यक्ति में लगा देने से, संक्रमित मरीज़ का खून किसी दूसरे व्यक्ति को चढ़ा देने से और संक्रमित व्यक्ति से यौन संबंध बनाने से भी फैल सकता है।

  • *लीला तिवानी

    आज विश्व हेपेटाइटिस दिवस है. हर साल 28 जुलाई को विश्व हेपेटाइटिस दिवस (World Hepatitis Day) मनाया जाता है। यह दिवस लीवर और उससे जुड़ी बीमारियों के बारे में जागरूकता फैलाने के मकसद से मनाया जाता है। विश्व हेपेटाइटिस दिवस के लिए इस वर्ष का विषय है, ‘Bringing hepatitis care closer to you.’ ‘हेपेटाइटिस देखभाल को अपनाना है।’ इस विषय का विचार हेपेटाइटिस देखभाल को और अधिक सुलभ बनाने की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना है।

  • *लीला तिवानी

    आज ही विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस भी है. विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस प्रत्येक वर्ष 28 जुलाई को मनाया जाता है। वर्तमान परिपेक्ष्य में कई प्रजाति के जीव जंतु एवं वनस्पति विलुप्त हो रहे हैं। विलुप्त होते जीव जंतु और वनस्पति की रक्षा का विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर संकल्प लेना ही इसका उद्देश्य है।

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