गीत/नवगीत

समर्पण

ऐसे भी हैं, लोग जहां में
जो गुमनामी में, जीवन बिताएं
हमको आपको, पता न चलता
लेकिन बड़े, परिवर्तन लाएं
जन कल्याण में, सर्वस्व लुटाएं ।

केवल देना ही, इनकी फितरत
कुछ न पाने की, इनकी चाहत
निस्वार्थ भाव से, काम सब करते
कोई सराहे, या ना सराहे
जन कल्याण में, सर्वस्व लुटाएं।

सेवा कार्य में ही, आनन्द पाते
उपलब्धियों के, ये गुण नहि गाते
तन,मन,धन सब, करें न्यौछावर
चुनौतियों से न, कभी घबराएं
जन कल्याण में, सर्वस्व लुटाएं ।

लक्ष्य पर अपने , डटे यह रहते
परेशानियां न, किसी से कहते
आपके उत्तम, भविष्य की खातिर
अपना यह, सुख- चैन गवांए
जन कल्याण में, सर्वस्व लुटाएं।

सरल ह्रदय और, स्वभाव रुचिकर
न कुछ गुरूर, ना ही कुछ जरूरत
कैसे आपका, जीवन हो सुखमय
इसमें वे अपना, जीवन खपाएं
जन कल्याण में, सर्वस्व लुटाएं ।

प्रशंसा किसको नहि अच्छी लगती
वाह-वाही तो, सबके मन भाए
दिल को मिलता, अद्भुत सुकून
जब कोई आपका, मान बढाए
जन कल्याण में, सर्वस्व लुटाएं।

सीमा प्रहरी हों, या हों सुरक्षा बल
डाक्टर, वैज्ञानिक, या, इंजीनियर
माता- पिता और अध्यापक गण
शोधकर्ताओं को, हम शीष नवाएं
जन कल्याण में, सर्वस्व लुटाएं ।

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई