कविता

फर्ज

कहां से लाए वह दिलों की तड़प
जो थी भगत सिंघ ,राज्यगुरू और आज़ाद  में
अब तो सिर्फ बातें बड़ी और ठंडे से दिलों की बात रह गई हैं
क्यों हैं राजनीति देश भक्ति में भी
देश द्रोह कानूनन जुल्म नहीं
उछाल देते हैं थूक प्रख्यात होने के लिए
तैयार रहते हैं अपनी ही मां को बदनाम करने के लिए
क्यों चाहिए इस देश से बताओं जरा
अंत समय में उसी के पंच महाभूतों में मिल जाओगे
सनातनी तो राख हो मिल जायेगा पवित्र नीर में
कुछ लोगों तो ये कयामत तक संजो के अपनी गोद में
छोड़ो ये तानाकशी के आलम को प्यार दो प्यार लो
नहीं करो पलट वार कभी
माता हैं ये हमारी कितनी बार उसे बांटोगे
ये वो नहीं जिसे तुम वृद्धाश्रम छोड़ आओगे
संभालों और संभलो अभी भी वक्त हैं
देखो उन्हे जिन्होंने किया अंदर अपनी मातृभूमि को
भटक रहे हैं  वे दर दर कुछ निवालों के लिए
आज तुम बच भी जाओगे तो  बच्चों क्या दे जाओगे
— जयश्री बर्मी

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।