स्वास्थ्य

स्वास्थ्य में निवेश का प्रश्न

आजकल स्व. श्री राकेश झुनझुनवाला के उस कथन की बहुत चर्चा हो रही है, जिसमें उन्होंने कहा है कि उन्होंने स्वास्थ्य पर बहुत निवेश किया था, लेकिन उसका प्रतिफल (रिटर्न) बहुत बुरा रहा। श्री झुनझुनवाला देश के प्रमुख शेयर ब्रोकर थे और उन्होंने इस व्यापार में अरबों-खरबों की सम्पत्ति कमायी थी। लेकिन वे अधेड़ावस्था तक आते-आते अनेक असाध्य रोगों से पीड़ित हो गये और फिर अपनी अकूत सम्पत्ति को छोड़कर मात्र 61 वर्ष की उम्र में ही भीषण हृदयाघात से परलोक सिधार गये। उनके कथन का सीधा तात्पर्य यह था कि उन्होंने अपने स्वास्थ्य के लिए डॉक्टरों, दवाइयों और अस्पतालों पर लाखों-करोड़ों रुपये व्यय किये, लेकिन इसके बदले में उन्हें स्वास्थ्य के बजाय केवल रोग और मृत्यु ही मिली।

माइकेल जैक्सन से लेकर राकेश झुनझुनवाला तक अनगिनत धनी लोगों ने अपने धन से स्वास्थ्य खरीदने की कोशिश की है और उसका परिणाम ठीक वही रहा है, जो इन दोनों का रहा। वे अपने धन से डॉक्टरों, दवाओं और अस्पतालों को तो खरीद सकते हैं, लेकिन स्वास्थ्य को नहीं पा सकते, क्योंकि स्वास्थ्य इन सबसे बहुत ऊपर है। इन अनुभवों से प्राकृतिक चिकित्सा के इस सिद्धान्त की ही पुष्टि होती है कि ऐलोपैथिक तथा अधिकतर अन्य तरह की दवाइयाँ केवल धीमा जहर हैं, जो सेवन करनेवाले की जीवनीशक्ति को नष्ट करके उसे धीरे-धीरे मृत्यु की ओर ले जाती हैं। इसके परिणामस्वरूप विभिन्न तरह की दवायें खाते-खाते ही वे जीवनभर रोगी बने रहकर कम उम्र में ही परलोक सिधार जाते हैं।

वास्तव में कोई डॉक्टर अपने स्वार्थ के कारण उनको यह नहीं बताता कि उन्हें रोगमुक्त होकर जीने के लिए दवाओं की नहीं, बल्कि अपनी जीवनशैली को सुधारने की आवश्यकता है। यह एक कठोर वैज्ञानिक सत्य है कि गलत जीवनशैली ही अनेक प्रकार के साधारण और गम्भीर रोगों का एकमात्र कारण होती है। इसमें सुधार किये बिना रोगमुक्त होने की कल्पना करना ही व्यर्थ है। जीवनशैली में शामिल हैं- खान-पान, रहन-सहन, दिनचर्या और सामाजिक व्यवहार।

अधिकतर लोग सबसे बड़ी गलती खान-पान में करते हैं। यह जानते हुए भी कि कोई वस्तु स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है, वे स्वाद और चलन के वशीभूत होकर उसका सेवन करते हैं और फिर उसका कुपरिणाम भुगतते हैं। प्रकृति ने हमें स्वस्थ रखने के लिए अनेक प्रकार के स्वादिष्ट खाद्य फल, अन्न, मेवा, पेय आदि उपलब्ध कराये हैं, पर हम उनका सेवन न करके अखाद्य वस्तुओं को खाते फिरते हैं। इसका परिणाम तो हमें भुगतना ही पड़ेगा।

इसी तरह साल में अनेक ऋतुएँ इसलिए होती हैं कि हमारा शरीर उनको झेलते हुए मजबूत बने। किन्तु हम मौसम के विपरीत चलते हैं। हम जाड़ों में हीटर के सामने बैठे रहते हैं, गर्मियों में हर समय कूलर या एसी वाले कमरों में घुसे रहते हैं और बरसात से बचते हैं। रहन-सहन की इस गलती के कारण ही हमारा शरीर रोगों का सामना करने में असमर्थ हो जाता है। स्वस्थ रहने के लिए यह आवश्यक है कि हम मौसम के साथ चलें अर्थात् जहाँ तक सम्भव हो जाड़ों में जाड़ा सहन करें, गर्मियों में गर्मी सहन करें और बरसात में भीगें भी। मौसम अपने शरीर की सहनशक्ति से बाहर होने पर ही हमें कृत्रिम उपायों का सहारा लेना चाहिए, वह भी न्यूनतम मात्रा में।

दिनचर्या के मामले में भी अधिकतर लोग भारी भूलें करते हैं। धन कमाने की होड़ में वे इतने व्यस्त रहते हैं और इतनी भाग-दौड़ करते हैं कि चैन से भोजन करने का समय भी उनके पास नहीं होता, व्यायाम आदि के लिए तो समय निकालने की बात ही दूर है। इससे धीरे-धीरे उनके स्वास्थ्य का सत्यानाश हो जाता है। उन्हें यह समझना चाहिए कि जिस धन को कमाने के लिए वे अपने स्वास्थ्य को नष्ट कर रहे हैं, वह धन उनके किसी काम नहीं आएगा और अन्त समय पर रखा रह जाएगा। इसलिए अपनी आवश्यकता से अधिक धन कमाने के लिए अपने स्वास्थ्य को दाँव पर नहीं लगाना चाहिए। स्वास्थ्य ही हमारा सबसे बड़ा धन है। हमारे लिए इससे अधिक मूल्यवान सम्पत्ति कुछ नहीं है। इसलिए हम चाहे कितने भी व्यस्त हों, हमें समय पर भोजन करने और व्यायाम करने के लिए समय निकालना ही चाहिए। हमें स्वस्थ रहने के लिए धन के निवेश की नहीं, बल्कि समय का निवेश करने की आवश्यकता है।

इनके अलावा सामाजिक व्यवहार भी बहुत महत्वपूर्ण है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज से अलग उसका कोई अस्तित्व नहीं है। इसलिए हमें अपने दैनिक जीवन में सामाजिक व्यवहार के लिए भी समय निकालना चाहिए। हमें अपने इष्ट मित्रों, नातेदारों और पड़ोसियांें से भी मेल-जोल रखना चाहिए और उनके सुख-दुःख में शामिल होना चाहिए। जो लोग अपने अहंकार के कारण ऐसा नहीं करते, वे आगे चलकर अनेक मानसिक रोगों से पीड़ित हो जाते हैं, जिनका कुप्रभाव शरीर पर भी पड़ता है।

यह सब लिखने का तात्पर्य यह नहीं है कि स्वास्थ्य के लिए हमें धन की कोई आवश्यकता नहीं है। वास्तव में स्वस्थ रहने के लिए हमें पौष्टिक भोजन, उचित रहन-सहन और सामाजिक व्यवहार के लिए भी कुछ मात्रा में धन की आवश्यकता होती है। इसी तरह नियमित समय अन्तरालों पर अपने स्वास्थ्य की जाँच कराने पर भी हमें कुछ धन व्यय करना पड़ता है, लेकिन यह व्यय उस खर्च की तुलना में बहुत कम होता है, जो बीमार पड़ने पर डॉक्टरों, दवाओं और अस्पतालों पर व्यय होता है।

— डॉ. विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com