लघुकथा

मोदक!

दस दिन का श्री गणेशोत्सव आ पहुंचा था. इस बार पंडाल वाले बड़े गणेशोत्सव से सुजाता को ढोलक बजाने का न्योता भेजा गया था. श्री गणेश जी की कृपा से वह आत्मविभोर थी. उसे पिछले साल की बात याद आ गई.
सुजाता भले ही बचपन में पोलियो का शिकार होकर लंगड़ाकर चलने के कारण दिव्यांग श्रेणी से थी, पर वह न तो पढ़ने में और न ही कला में किसी से पीछे नहीं रही. कक्षा में जो सिखाया जाता, भलीभांति हृदयंगम कर लेती और जब जरूरत हो, उसका उपयोग कर लेती.
कॉलोनी के मंदिर में कीर्तन होता, वह भी चली जाती. मंदिर में ढोलक तो थी, पर बजाने वाला कोई नहीं था. ऐसे ही हाथ पीटते-पीटते वह बहुत अच्छी ढोलक बजाना सीख गई.
“ढोलक बजाने में उसका कोई सानी नहीं है.” कॉलोनी वाले कहते.
चित्रकला में भी वह पारंगत थी. उसकी टीचर ने उसकी कला के कुछ नमूने आर्चीज़ गैलरी को दिखाए थे, वे हैरान हो गए और अपने साथ जोड़ लिया. उससे भी कुछ आमदनी होने लगी.
यों तो घर में खाना-पीना ठीक से हो जाता, पर मिठाई जरा कम ही आ पाती थी. लड्डू-जलेबी तो उसे कीर्तन के प्रसाद में मिल भी जाता, पर मोदक! मोदक कहां मिलते! मोदक तो श्री गणेश जी की बड़ी पूजा में ही मिल सकते थे!
श्री गणेश महोत्सव शुरु होने वाला था. वह यों ही समय से पहले पंडाल में चली गई थी और आगे बैठी थी. समय हो गया था, पर कीर्तन शुरु नहीं हो पा रहा था.
उसने ढोलक बजाने वाली के न आ पाने की खुसुर-फुसुर सुनी. आयोजकों को चिंतित देखकर उसने “मैं कोशिश करके देखूं?” कहा था.
आयोजक उसके सामान्य वस्त्रों और टांग सीधी करके बैठने के कारण असमंजस से उसे देखने लगे थे. एक दीदी ने आकर पूछा- “ढोलक अच्छी बजा लेती हो?”
“वह तो पता नहीं, पर हमारी कॉलोनी वाले कहते हैं, कि ढोलक बजाने में मेरा कोई सानी नहीं है.”
श्री गणेश जी की कृपा से उस अवसर पर ऐसी ढोलक बजी, कि सब देखते ही रह गए. सबके साथ सुर-ताल मिलाने में भी उसने अपनी कला का कमाल दिखा दिया.
“आप गाती भी होंगी!” एक दीदी ने सवाल पूछ लिया.
“जी कुछ गुनगुना लेती हूं.” उसके जवाब में विनम्रता झलक रही थी.
फिर क्या था! उसने ऐसा श्री गणेश-भजन गाया कि सब ताल मिलाकर उसके साथ गाने लगे. सम्भवतः श्री गणेश जी भी सबके साथ उसके भजन पर मुग्ध हो गए थे. फिर तो वह भी स्टॉफ मेम्बर हो गई थी और पूरे दस दिन तक उसने धूम मचाई थी. और मोदक!
मोदक भी उसने छककर खाए थे. स्टॉफ मेम्बर हो जाने के कारण उसे मम्मी-पापा-भाई के लिए भी दो-दो मोदक दिए जाते थे.
इस बार फिर गणेश जी ने उसे मोदक खाने के लिए बुलाया है! वह भावाभिभूत थी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244