कविता

गणेश उवाच

ऐ मेरे प्यारे कथित भक्तो
मैं दुःखी हूँ, परेशान भी
तुमसे, तुम्हारी आदतों से
बहुत हैरान आश्चर्य चकित भी।
तुम्हारी विकृति सोच से
अब तक अंजान हूँ, ऐसा तुम सोचते हो,
मुझे बेवकूफ समझते हो?
क्योंकि तुम खुद को
बड़े तीसमार खाँ समझते हो।
तुम्हारे दिमाग में गोबर भरा है
या सिर पर कोई भूत सवार है,
जो सीधी साधी बात नहीं समझते हो,
तो बस! मेरी बात का जवाब दे दो
मुझे सबसे पहले क्यों पूजते हो
यही हमें बतला दो।
लेकिन मुझे पता है तुम्हारा जवाब
यही कहोगे न प्रभु आप प्रथम पूज्य हो
सही कह रहे तुम सब।
परंतु ऐसा कुछ भी नहीं है
यह तुम्हारा भ्रम है
या तुम सब गुमराह हो,
या हमें गुमराह करने की ठान लिए हो
पर मैं गुमराह नहीं होने वाला,
तुम्हारी हरकतें ऐसी हैं कि
तुम्हारा कल्याण भी नहीं होने वाला।
क्यों?ये भी मैं ही बता देता हूँ
तुम्हारे चेहरे का नकाब हटा देता हूँ,
साफ साफ समझा देता हूँ।
समझ सको तो अच्छा है
वरना तुम्हारी सद इच्छा है।
मैं प्रथम पूज्य हूँ इतना तो जानते ही हो
पर क्यों हूँ क्या ये नहीं जानते हो?
मैंनें अपने माता पिता की पूजा की
उन्हें ही धरती और आकाश माना
उनकी आज्ञा को सिर झुका कर स्वीकार किया
मां की आज्ञा के लिए पिता से भी युद्ध किया
अपना शीष पिता के हाथों कटवा लिया।
पिता की इच्छा का इतना सम्मान किया
गजशीष खुशी खुशी स्वीकार किया,
कभी देखा मुझे उनका दिल दुखाते?
बोलोगे नहीं पर सच भी तो यही है।
अब तुम अपनी सुनाओ, बताओ
मगर तुम क्यों बताओगे
माता पिता की कद्र तुम्हें है ही नहीं
ये कथा भला कैसे सुनाओगे?
माँ बाप को उपेक्षित करना
तुम्हारा धर्म बनता जा रहा है
माता पिता को खुद से दूर करना
तुम्हारा प्रिय शगल हो रहा है
रोते कल्पते माँ बाप तुम्हें दिखते नहीं हैं
तुम्हारा स्वार्थ, अभिमान बन रहा है।
तुम्हारा बूढ़ा बाप बूढ़ी माँ
तुम्हारे स्टेटस पर दाग दिख रहा है,
और तो और जिस माँ बाप ने
तिल तिल खुद को होमकर
तुम्हें पाल पोसकर लायक बनाया है
आज वही तुम्हारे लिए
फालतू सामान सा हो गया है,
जिसे तुमनें घर के किसी कोनें में
कबाड़ सा फेंक दिया है
अथवा रद्दी सरीखा बेंच दिया है
वृद्धाश्रम में भेज इतिश्री कर लिया है
फिर ये बात मेरी समझ में नहीं आता
आखिर मुझसे तुम्हारा क्या रिश्ता नाता,
तुम सब मुझे पूजते कहाँ हो
सिर्फ दिखावा भर करते हो
महज औपचारिकता निभाते हो।
अब मेरी बात ध्यान से सुन लो
तुम्हारा भला कभी हो नहीं सकता
ये गणेश तुम्हारे पाप का बोझ और नहीं ढो सकता,
तुम्हारे माँ बाप की आह नहीं ले सकता।
क्योंकि जो अपने जन्मदाता का नहीं है
वो भला औघड़धानी शिवशंकर और
माँ पार्वती के पुत्र से भला
कैसे नेह लगा सकता है?
फिर आप सब मुझे बस इतना बताइये
ये बेडौल गजानन, लंबोदर
तुम्हारा भला कैसे कर सकता है?
तुम्हारी पूजा से भला
कब तक गुमराह हो सकता है।
हा! एक विकल्प अब भी है
मेरी पूजा से जो ज्यादा जरुरी है,
भूल जाओ सभी देवी देवताओं को
वो बिना पूजा के ही तुम पर प्रसन्न हो जायेंगे,
जिस दिन तुम्हारे माँ बाप हमसे ज्यादा
तुमसे मान सम्मान पायेंगे
उस दिन से हम सभी देवी देवताओं में
तुम्हारे लिए कल्याण भाव दिखाएंगे
और मंद मंद मुस्कराएंगे,
क्योंकि तब तुम्हारे माँ बाप में
वे खुद को जो पाएंगे,
तुम्हारे कल्याण को नव पंख लग जाएंगे,
तुम्हारे सोये भाग्य जग जाएंगे।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921