कविता

काश मैं भी

काश मैं भी होती
एक पुस्तक की भांँति तो
पढ़कर समझ पाती अपने गुजरे हुए कल
आने वाले वर्तमान और भविष्य से
और सुधार पाती मैं अपनी
गलतियों को अतीत के पन्नों से
काश मैं भी होती एक पुस्तक की भांँति…..

समझ पाती अपनी वर्तमान की परिस्थितियों को
और गढ़ पाती अपने स्वर्णिम भविष्य को
काश मैं भी समझ पाती उन रिश्तों को
जो कहने को तो अपने हैं पर बस कहने को
और समझ पाती अपने लिए उनके विचारों को
काश मैं भी होती एक पुस्तक की भाँति…..

कुछ सीख लेती यदि मैं अपने
गुजरे हुए कल और वर्तमान से
तो सरल, सहज और व्यक्तित्व विकास के लिए
गढ़ लेती अपने लिए एक सुंदर भविष्य को
काश मैं भी होती एक पुस्तक भाँति…..

— डॉ.सारिका ठाकुर “जागृति”

डॉ. सारिका ठाकुर "जागृति"

ग्वालियर (म.प्र)