बच्चे और गुलाब एक जैसे,
जैसे पालो बन जाएं वैसे,
बच्चे गुलाब की तरह
महकें और जग को महकाएं,
खिलखिलाती खुशी से
चहकें और सबको चहकाएं,
आशा की किरण बनकर
चमकें और जग को चमकाएं,
यह मेरी चाहत है,
यही चाहत मेरी राहत है.
*लीला तिवानी
लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं।
लीला तिवानी
57, बैंक अपार्टमेंट्स,
प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4
द्वारका, नई दिल्ली
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