लघुकथा

सहारा!

मीनल बहुत खुश थी. उसके बच्चे भी स्कूल में अच्छी तरह पढ़ाई कर रहे थे और खाने-पीने की दिक्कत भी खत्म हो गई थी. सिलाई करते-करते उसके सामने पुराने चित्र घुमड़ने लगते थे.
“मैडम जी, मधु कल से स्कूल नहीं आएगी.” स्कूल की आधी छुट्टी में स्टाफ रूम में जाकर मैंने उसकी कक्षाध्यापिका नीलम को कहा था.
“सब कुछ-कुछ कहने लगी थीं. जिन्हें भूख हो-न-हो खाने के समय खाना मिल जाए, उन्हें क्या पता कि भूख क्या होती है?”
मैं सुन्न-सी सुनती रही थी.
“आप लोग पांच रुपये नहीं दे पा रहे!” एक और अध्यापिका की जिज्ञासा थी.
“मैडम जी, जब भूख के मारे आंतें तिलमिलाती हैं, तो दिन में तारे दिखाई देते है, पढ़ाई के शब्द नहीं!” मेरे दुःखी मन का दर्द था.
“अच्छा एक बात बताइए कि आप कुछ काम कर सकती हैं?” गृह विज्ञान की अध्यापिका ने बात को संभालने की कोशिश की. “कृपया आप बैठकर बात कीजिए” एक खाली कुर्सी की ओर इशारा करते हुए उन्होंने निहोरा किया.
“मैडम जी,” महिला की कोरों से आंसू चमकने लगे थे. “काम तो बहुतेरे कर सकती हूं, पर कोई काम मिलता ही नहीं.”
“वो क्यों भला!” आश्चर्य होना स्वाभाविक था.
“झाड़ू-पोंछे के लिए आसपास कोई घर नहीं मिल रहा, मजदूरी के लिए जाती हूं तो कहते हैं- “तुम बड़ी नाजुक हो, इतनी मेहनत वाला काम तुमसे नहीं होगा.” वह रुआंसी-सी हो रही थी.
“कपड़े सिल सकती हूं, पर मशीन नहीं है.” तनिक रुक कर बोली. बात गृह विज्ञान से संबंधित आ गई थी.
“बच्चों की यूनीफॉर्म सिल सकती हैं?” प्रधानाचार्या ने पूछा. उनको अपनी मां के दर्द भरे दिन याद आ गए थे.
“हां जी, मैंने सिलाई का सारा कोर्स किया हुआ है. मैं अच्छे घर से थी. आदमी के चले जाने के बाद खाने के लाले पड़ गए हैं.” तनिक आशा की चमक उसकी आंखों में दिखाई दी.
“अच्छा आप बाहर बैठिए, थोड़ी देर में आपको बुलाते हैं.” वह चली गई.
“धमीजा जी, इसको गॉर्ड रूम के पास जो छोटा-सा कमरा है, उसमें मशीन रखवा के देख लें! अगर कपड़े अच्छे सिले तो इसकी मदद भी हो जाएगी और यूनीफॉर्म बाजार से सस्ती भी पड़ेगी?” गृह विज्ञान की अध्यापिका से प्रश्न पूछा गया था.
“जी मैडम, ऐसा कर सकते हैं.”
मुझे काम मिल गया था.
इतने हाथों का सहारा मेरे लिए काफी था.
“मेरे कहने पर सीमा को भी काम मिल गया है, कल से वह भी आएगी.” उसकी आंखों चमक थी, वह भी किसी का सहारा बनी!”

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244